मंगलवार, 18 नवंबर 2014

बोलता पत्थर !


(फोटो गूगल से साभार)


कितनी ठोकरें खाई थीं
राह में पड़े थे जब 
किसी ने उठा 
रख दिया मंदिर में
और समय बदल गया है अब
  
जो मारते थे ठोकरें 
खुद पूजने आ गए
खाया था जिनसे चोट  
पैरों पर मेरे 'वो'
कितने फूल चढ़ा गए  !


सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

माँ का आँचल प्यार भरा !

(फोटो गूगल से साभार)




माँ तेरे यादों की हर चीज 
समेट कर रख दी है 
सहेज कर 
मन में 
जो कभी पानी 
तो कभी 
बादल बन 
बरस जाती हैं 
मन में ही 

मैं सहेजता हूँ उन 
बूंदों को 
मैं बहने नहीं देना चाहता 
उनको 
उन बूंदों में भीगना 
अच्छा लगता है 

माना मन रोता है 
कई बार 
तुम्हें याद कर के 
पर तेरी इन यादों से 
मन सजीव हो उठता है 
जहाँ मायावी  
मुस्कान और आँसू
अपना अस्तित्व खो देते हैं 
और मन 
विश्राम पाता है 
बिलकुल वैसे ही जैसे  
विचलित जल तरंगों को 
कोई किनारा मिल गया हो 
शुकून भरा 
जैसे किसी बालक को मिल गया हो 
माँ का आँचल 
प्यार भरा !


शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

कुछ रात उधार लिया था मैंने !

(फोटो गूगल से साभार) 



पिछली दिवाली पर 
कुछ रात उधार लिया था मैंने  

केशुओं की कांति 
चेहरे का उजाला 
आँखों में सजी 
भावों की रंगोली 
सब अद्वितीय था 
प्रेम के लिए 
प्रेम का श्रृंगार किया था तुमने 
और कुछ रात उधार लिया था मैंने 

उस रात 
हाथ की लकीरें 
राहें बनी थीं 
और सजे थे 
आशाओं के दीये 
उन राहों पर 
फिर भटकते क़दमों को 
अपने क़दमों का साथ दिया था तुमने 
और कुछ रात उधार लिया था मैंने

कुछ बातें थी 
मौन सी 
जो मुखर हुए जा रही थी 
दिवाली के आसमां पर बिखरकर
और कुछ लफ्ज थे 
जो फुलझड़ियों की तरह 
बिखर रहे थे नीचे धरा पर 
अपने कुछ हँसते जज्बात दिए थे तुमने 
और कुछ रात उधार लिया था मैंने 

होता है उजाला अब 
मेरा हर दिन  
उस रात से 
बनती है मेरी हर बात 
अब उस रात से 
उसे स्वप्न कहो 
या कुछ और 
गीली धूप, भीगी मुस्कुराहटें 
और बहुत कुछ  
मिलता है उस रात से 
वो रात, अब मैं लौटा नहीं सकता तुम्हें 
जो पिछली दिवाली, उधार लिया था मैंने !





बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

पशुता मर गयी !

(फोटो गूगल से साभार)



सुना है 
एक पशु की 
बलि दी  
मनुष्यों ने 

और 
उसके बाद 
मनुष्यों के भीतर का 
इंसान   
जाग उठा  
और  अंदर की 
पशुता 
मर गयी !



गुरुवार, 4 सितंबर 2014

आखिर कौन था वो ?



(फोटो गूगल से साभार)



कभी कभी ठहर जाता हूँ 
आईने के सामने आकर 
मेरा प्रतिबिंब नहीं दिखता 
दिखता है कुछ और

तीन खीचीं लकीरें 
मेरे माथे पर 
और आँखों के नीचे 
सूनापन लिए गहरा अन्धकार 
कुछ और ही 
बोल रहा होता है 

इतना उदास सा चेहरा 
कब हुआ ऐसा !
पता नहीं चला 
और क्यूँ !
यह भी अज्ञात 

फिर आभास होता है मुझे  
कोई पीछे खड़ा है मेरे 
मुस्कुराता हुआ 
मेरे ऊपर  
(शायद 'मैं' ही हूँ )
मैं मिलता हूँ उससे 
और अब 
आइने में 'मैं' हूँ 
कोई और नहीं
.
.
आखिर कौन था वो ?


शनिवार, 9 अगस्त 2014

अटूट, अंतहीन, निश्छल प्यार !

राखी पर अपनी एक रचना फिर से साझा कर रहा हूँ  :)






इस दुनिया में सबसे प्यारा
भाई - बहन का प्यार है
और त्योहारों में सबसे पावन
राखी का त्योहार है

एक के आँखों में आँसू
दूजे के नयन छलकाता है
बहना जब होती उदास
भैया उसे हँसाता है

थोड़ी शरारत आपस में
थोड़ी सी होती तकरार
हर शरारत में छुपा होता
अनजाना अनोखा सा इक प्यार

भाई - बहन का रिश्ता ऐसा
जो हर सुख - दुःख आपस में बाँटे
एक के राहों का काँटा
दूजा अपने हाथों से छाँटे

रेशम के इक धागे से
बंधा भाई - बहन का प्यार
अटूट , अंतहीन , निश्छल है जो
प्यारा सुंदर सा ऐसा संसार
प्यारा सुंदर सा ऐसा संसार 


आप सभी को रक्षाबंधन पर्व के इस शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ !!

सोमवार, 28 जुलाई 2014

पर वो गरीब आज भी गरीब है

(फोटो गूगल से साभार)



दिख जाते हैं 
अक्सर कई फ़कीर 
गंदे मैले कुचैले से 
कपड़े पहने 
राहों पर 
कोई गरीब कचड़ा बीनता 
कोई मासूम भीख मांगता 
गाड़ियों में 

गरीबी जैसे शाप बनकर 
मिला हो 
उनको जीवन में 
और साथ ही मिल जाते हैं कई 
बुद्धिजीवी लेखक 
अपनी किसी नई रचना का 
विषय ढूंढते उनमे 
और रच जाते हैं कभी कभी 
अद्वितीय रचना 
मिल जाता है कोई 
चित्रकार चित्र उकेरते 
गरीबी की 
कोई फोटो लेने वाला 
फोटो लेते उनकी विवशता का 
और जीत जाते हैं पुरस्कार 
ले जाते हैं इनाम कई 
उगा लेते हैं धन लाखों में 

पर वो गरीब 
आज भी गरीब है  
उनकी तस्वीर हर रोज 
ले रहा होता है कोई 
रचनाएँ हर रोज 
रची जाती है कहीं 
पर गरीबों का क्या 
वो अभी भी लगे हैं 
दो वक्त की रोटी 
जुगाड़ने में  
जूझते खुद अकेले 
अपनी नियति को 
संभालने में 






सोमवार, 30 जून 2014

छोड़ आया हूँ कुछ नगमें ..



(फोटो गूगल से साभार)



छोड़ आया हूँ कुछ नगमे 
साहिलों पर तेरे नाम से 
शाम छुपा कर रख दिया है 
वही रेत की ढेर में 
कुछ पत्थर उगा आया हूँ 
वहाँ आस पास 
बस जो सावन आ जाए  
झूम लेंगे तब सभी 
अभी तो शांत सोए हैं 
सब अलसाई नींद में 
 
कश्ती पड़ी वही 
थकी सी हार कर  
सूरज से मिल लौटा था
दरिया को पार कर 
उम्मीद डूबी नहीं 
इक सूरज के डूबने से 
लो कारवां चल पड़ा फिर  
इक चाँद के उगने से 



शनिवार, 21 जून 2014

लम्हा लम्हा जिंदगी का कतरा कतरा जाता है

(फोटो गूगल से साभार)



लम्हा लम्हा जिंदगी का कतरा कतरा जाता है 
अपनी बर्बादी पे कोई गीत ख़ुशी के गाता है 

गरीब की गरीबी मजाक नहीं है कोई  
आँखों में आँसू लिए कोई राम कथा सुनाता है  

टूटे फूलों से कब किसी ने पूछा हाल उसका  
डाल डाल खामोश खड़ा कुछ नहीं कर पाता है  

बड़ा ही मुश्किल है सूरज और चाँद बनना 
तारों की भीड़ में इक तारा कहीं खो जाता है

कैसा दौर जश्न का का आज चल पड़ा है 
रौशनी की महफ़िल में अँधेरा झूमता आता है  



शनिवार, 31 मई 2014

खुल रहे दिल के कई राज फिर से

(फोटो गूगल से साभार)


तेरी तस्वीर देखी है मैंने आज फिर से 
खुल रहे दिल के कई राज फिर से 

खो गयी है मेरी मुकम्मल रात कहीं 
जोड़ तारों को बजा रहा साज फिर से 

धड़कने खामोश बैठी थी तनहा अकेली 
धड़कनों को दे गया कोई अल्फाज फिर से 

आँखों में अरमानों का उत्सव है कैसा 
मायूसी में मुस्कानों का आया रिवाज फिर से 

दिल दरिया है मुहब्बत का  कैसे तुम्हें बताए 
दिल में बन रहा कहीं नया एक ताज फिर से 

तेरी तस्वीर देखी है मैंने आज फिर से 
खुल रहे दिल के कई राज फिर से

सोमवार, 5 मई 2014

प्रश्न श्रृंखला !


(फोटो गूगल से साभार)



आखिर क्या मिलेगा ऐसा करने से ?
आखिर क्यों, किसलिए ?
ऐसे कई प्रश्न 
हर पल उठते हैं ज़ेहन  में 
प्रश्नों की एक श्रृंखला 
अनजाने मन में ही सही 
बन रही होती है कहीं 
किसी कोने में 
लेकिन हम बेपरवाह से हुए 
नकारते रहते हैं  
उसके वजूद को 
पर जब मन  बँध जाता है 
उसके पाश में पूरी तरह 
तब खुद को छुड़ाने की कोशिश में 
हम ढूंढना शुरू करते हैं उत्तर 
और जब ढूंढते हैं उत्तर 
हर उत्तर एक प्रश्न लिए खड़ा होता है 
और प्रश्नों की श्रृंखला 
घटने की बजाय 
बढ़ती चली जाती है 
रह जाते हैं इस तरह 
कई प्रश्न अनुत्तरित 
और अंत में 
दफ़न हो जाते हैं 
कई प्रश्न, यूँ ही  
कब्र के अंदर !




बुधवार, 30 अप्रैल 2014

भागता चला जाता हूँ !

 (फोटो गूगल से साभार)



कि आजकल सपने 
कितने डरावने हो गए हैं 
अजीब अजीब आकृतियाँ 
अजीब अजीब परछाईयाँ 
पीछा करती हुई अक्सर 
और 'मैं' भागता हुआ 
पीछा छुड़ाता हुआ 
कादो कीचड़ में पैर सनते हुए 
और फिर भी 
निकलने की जद्दोजहद 
अजीब सा खौफ 
चेहरे पर 
पसीनापस माथा 
साँप बिच्छू 
और कई तरह तरह की चीजें 
सामने दिख जाते हैं 
कभी डर से मूक खड़ा 
तो कभी लड़ने की कोशिश 
सांप की बजाय मैं रेंगता हुआ 
और कभी कभी प्राणहीन सा शरीर
बिलकुल शिथिल 
बस जैसे सौंप दिया हो 
खुद को 
परिस्थिति के हाथों में 
पर ना जाने 
फिर क्या होता है 
पता नहीं 
थोड़ी सी आशा 
जाग उठती है  मन में 
कहीं से तो प्राण आते हैं 
शिथिल हुए पैरों में 
और मैं फिर भागने लगता हूँ 
और भागता चला जाता हूँ !



रविवार, 20 अप्रैल 2014

खाली कर दूँ अपनी पूरी शाम !

(फोटो गूगल से साभार)




जी करता है 
पैमाने में भर लूँ  जाम 
खाली कर दूँ 
अपनी पूरी शाम !

अब कोई बात ना रहे 
कहने को 
कोई बादल ना उमड़े 
बरसने को 

कि काश मैं रोक पाऊँ 
बहते मन को 
दे सकूँ कोई मोड़ नया 
जीवन को 

लौटना मुश्किल 
जो बढ़ गया आगे 
बँधता हूँ, बँधता हूँ 
बाँध रहे कितने धागे 

दिन उतरता है 
रात चढ़ता है 
पर शाम ठहरा रहता है कहीं 
मेरे संग, मेरे अंदर  

आखिर क्यों समझ से परे 
जीवन का यह आयाम !
जी करता है 
पैमाने में भर लूँ जाम  
खाली कर दूँ 
अपनी पूरी शाम !





शुक्रवार, 14 मार्च 2014

उनकी आँखों में कई बातें हुआ करती हैं

(फोटो गूगल से साभार)

उनकी आँखों में कई बातें हुआ करती हैं 
थोड़ी ही सही मुलाकातें हुआ करती हैं 

नींद उनको भी कहाँ आती है आँखों में 
ख्यालों में डूबी दो रातें हुआ करती है 

तन्हाई में अक्सर वो गीत गाते हैं कोई 
घुलती चाँदनी में इबादतें हुआ करती हैं

टूट कर तारा कोई गिरता है दामन में 
मानो ना मानो ये करामातें हुआ करती हैं 

लहर दरिया का बन दौड़ता है मेरे अंदर 
मासूम जो आपकी ख्यालातें हुआ करती हैं 


सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

माँ तेरा बचपन देख आया हूँ !

(फोटो गूगल से साभार)



माँ तेरा बचपन देख आया हूँ 
माँ तुझे खेलता देख आया हूँ 
मैंने देखा तुम्हें 
अपनी माँ की गोद में रोते 
देखा तुम्हें थोड़ा बड़ा होते 
मिटटी सने हाथ देखे तुम्हारे 
खिलौने भरे हाथ देखे तुम्हारे 
तुम्हारी मासूम हँसी देखी 
तुम्हारा रोना देखा 
पापा का तुमपर बरसता प्यार देखा 
माँ का तुम्हारे लिए दुलार देखा 
तुम्हें पग पग बढ़ते देखा 
मेंहदी लगे तेरे हाथों में 
शादी के जोड़े में 
सजा श्रृंगार देखा 
आँखों में विदाई की पीड़ा 
माँ पापा भाई बहन अपनों से 
दूर जाने की पीड़ा 
तेरा अलग बनता एक संसार देखा 
तुम्हारी नयी दुनिया देखी 
पराये थे जो कल तक 
उनके लिए अपनेपन का भाव देखा 
लाखों दर्द छुपाए 
जिम्मेदारियों को ढोने का अंदाज देखा
ससुराल में रहकर भी  
मायका के लिए अटूट प्यार देखा 
माँ फिर मैंने खुद को देखा 
तुम्हारी गोद में 
तुम्हारी ममतामयी गोद में
तुम्हें मुझे खिलाते हुए  
और माँ 
अब तुम मुझे देख रही हो 
खेलते हुए 
बड़े होते हुए 
बूढ़े होते हुए 




गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

रश्मि प्रभा मैडम के जन्मदिन पर!

आज की यह पोस्ट आदरणीया रश्मि प्रभा मैडम के जन्मदिवस पर है।  उनके लिए कुछ भी लिखना बहुत ही कम है । बस मेरा मन हुआ और मैंने एक छोटी सी कविता लिखी । किसी भी त्रुटि या गलती के लिए क्षमा चाहूँगा । हमसभी की तरफ से उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ ! :-)

(फोटो गूगल से साभार)


नभ से एक किरण उतरी 
धरती के हरित पटल पर
बीज बनी वह 'रश्मि' 
बन पौध उगी वहीं पर 

प्रेम स्नेह की बारिश में 
कवि पंत के आशीष तले 
वो नव नित पल्लवित हुई 
अनगिन किरणों की आभा ओढ़े 
वटवृक्ष सी विस्तृत हुई

नहीं बंधी कभी भी वह 
तम के घोर अंधेरों से 
लेकिन बंध जाती है खुद वो 
प्रेम भाव के डोरों से 

मानव हित और मूल्यों की रक्षा 
करने को वह खड़ी तत्पर हैं 
विशाल हृदयी वो सहृदयी 
सारा जग ही उनका घर है 

कवि पंत की मानस पुत्री 
को करता मन नमस्कार 
आप रहे दीर्घायु स्वस्थ प्रसन्न सदा  
मिलता रहे सबका स्नेह और प्यार


शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

खुशनसीब हैं वो जो दर्द में मुस्कुराते हैं

(फोटो गूगल से साभार)


आँधियों में अक्सर पत्ते टूट जाते हैं 
खुशनसीब हैं वो जो दर्द में मुस्कुराते हैं 

डूब जाता है सूरज दिन के किनारे पर 
चाँद तो अक्सर रात में ही देखे जाते हैं 

हर राह हो फूलों से सजा जरुरी नहीं 
काँटों से होकर भी मंजिल को पाते हैं  

क्या कुछ नहीं निकलता है  मंथन से 
भोले हैं वो जो विष पीकर भी जी जाते हैं

जमीन से जुड़ा रहना बहुत जरुरी हैं 
उड़ते पक्षी सुस्ताने फिर नीचे ही आते हैं 




मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

गीत: माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे

(फोटो: गूगल से साभार)


माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे 
विपदा बड़ी है हरो कष्ट सारे 

तू बुद्धि दात्री, ज्ञान समंदर
वीणा वादिनी, झंकृत हर स्वर
ताप मिटे अब हर मन का 
माँ ऐसी हम पर कृपा तू कर
शीश झुकाए हम खड़े हैं, 
आश लिए दर्शन को तिहारे  
माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे 

हम निर्बुद्धि हम अज्ञानी 
बालक नादान करते नादानी
ज्ञान की अमृत हमें पिलाओ 
चले राह सही सदा  
दे बुद्धि ऐसी माँ वीणा पाणि 
मैहर वाली माता रानी 
तेरा बालक तुझे पुकारे 
माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे

माँ हंस सवार हो आओ मेरे द्वारे 
विपदा बड़ी है हरो कष्ट सारे  


आपसभी को वसंत पंचमी की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ !

बुधवार, 29 जनवरी 2014

आज नया कुछ गढ़ जाएँगे

(फोटो गूगल से साभार)



कुछ सीमाएँ तुम तोड़ो 
कुछ सीमाएँ मैं तोडूँ  
चलो शून्य को बढ़ जाएँगे 
​​आज नया कुछ गढ़ जाएँगे 

रात की काली चादर हटा दें 
जर्रे जर्रे को बता दें 
प्रणय प्रीत की धुन लिए 
उन्मुक्त हवा सी बह जाएँ 
उच्च गगन की पीड़ा को 
आज धरा को कह जाएंगे 
आज नया कुछ गढ़ जाएँगे 

देख दिखावे की उलझी रस्में 
हम क्यूँ इनमे उलझे जाएं 
बस जो सुंदर और सही है 
हम उनमें बस घुल मिल जाएँ 
वाद विवाद में क्या है पड़ना 
सुखद संवादों में बह जाएंगे 
आज नया कुछ गढ़ जाएँगे 

पीड़ा की अन्तःपीड़ा को 
जाने कौन समझ पाएगा 
झूठी मुस्कानों के बदले 
खुशियाँ कौड़ी बिक जाएगा 
द्वंद्व अंतर्द्वंद्व के चक्रव्यूह को 
क्यूँ ना हम भेद पाएँगे 
आज नया कुछ गढ़ जाएँगे 

कुछ सीमाएँ तुम तोड़ो 
कुछ सीमाएँ मैं तोडूँ  
चलो शून्य को बढ़ जाएँगे 
​​आज नया कुछ गढ़ जाएँगे


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