गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

आखिर कब ?

(फोटो गूगल से साभार)



एक 'शाम'
जो छोड़ आया था कोई
समंदर की लहरों पर
सुना है
आज तक वो 'शाम'
ढली नहीं

बाट जोहती किसी की
उच्छश्रृंखल सी
बार बार
डूबते किनारे पर
ढूँढती है निशां
किसी के क़दमों की

सुना है
ज्वार उठता है कभी कभी
खामोश गहराई से
और लहरें बात करती मिलती हैं
खामोश शाम की तन्हाई से 

सवाल एक ही है
आखिर कब
वो 'शाम' ढलेगी
और कब उसे 'मुक्ति' मिलेगी
आखिर कब ?

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

इस 'शोर' को मौत क्यूँ नहीं आती !

(फोटो गूगल से साभार)
'शोर' से तंग 
शाम 'मन'
रोकना चाहता है
भाग रहे पैरों को
चाहता है महसूस करना
हवाओं में झूमती
मद मस्त तरंगों को
पर बेबसी
मन की देखी नहीं जाती
शोर की दुनिया
और
दुनिया के शोर में
बेबस फँसे
मन की छटपटाहट 
और नहीं सही जाती
आखिर क्या करें
इस शोर का
इस 'शोर' को
मौत क्यूँ नहीं आती !

मन जब कभी
डूबा होता है
असीम आकाश में
बैठा शांत
खोया होता है कहीं
अस्तित्व विहीन हुआ
सुदूर श्वेत प्रकाश में
तभी
एक शोर कहीं से आकर 
उसे पकड़ ला गिराती है
अपनी  शोर भरी दुनिया में
और मन बस फिर यही सोचता है
कि आखिर क्या करें
इस शोर का
इस 'शोर' को
मौत क्यूँ नहीं आती !

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

ऐसा क्यों ?

(फोटो गूगल से साभार)

तुमने जो दो बोल
कभी बोले थे
थोड़ी सी मुस्कराहट लिए
वो आज भी घूम रहे हैं
मेरे इर्द गिर्द

हर रात
मेरी नींद में
पहले तुम्हारी आवाज आती है
और फिर
मुस्कुराती हुई तुम

पर आज क्या हुआ
तुम्हारी आवाज तो आयी
मगर तुम नहीं
ऐसा क्यों ?

ख्वाब तो ख़त्म होना है
मगर तुम्हारा क्या ?
तुम तो हर सुबह
जाग जाती हो
संग मेरे
खामोश नींद से

फिर रहती हैं 
चारो तरफ
तुम और तुम्हारी आवाज
मगर सिर्फ .....
खामोश नींद से पहले तक
खामोश नींद में तो
मिलती है अब .....
सिर्फ तुम्हारी आवाज
ऐसा क्यों ?

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