सोमवार, 29 जुलाई 2013

खाली पड़ा कैनवास





उस खाली पड़े कैनवास  पर 
हर रोज सोचता हूँ 
एक तस्वीर उकेरूँ 
कुछ ऐसे रंग भरूँ 
जो अद्वितीय हो 
पर कौन सी तस्वीर बनाऊँ 
जो हो अलग सबसे हटकर 
अद्वितीय और अनोखी
इसी सोच में बस गुम हो जाता हूँ 
ब्रश और रंग लिए हाथों में 
पर उस तस्वीर की तस्वीर 
नहीं उतरती मेरे मन में 
जो उतार सकूँ कैनवास पर 
वह रिक्त पड़ा कैनवास 
बस ताकता रहता है मुझे हर वक्त 
एक खामोश प्रश्न लिए 
और मैं 
मैं ढूँढने लगता हूँ जवाब
पर जवाब ...
जवाब अभी तक मिला नहीं 
तस्वीर अभी तक उतरी नहीं 
मेरे मन में 
और वह खाली पड़ा कैनवास 
आज भी देख रहा है मुझे 
अपनी सूनी आँखों में खामोशी लिए  





@फोटो : गूगल से साभार

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार





पुलकित आनंदित अंतर्मन
देख रहा कोई दर्पण
विकार रहित हुआ जाता है 
खुल रहा मन का बंधन 
व्याकुल मन की व्यथाएँ चली व्योम के पार 
हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार  


अभिलाषाएँ कुछ दबी हुई 
जाग गयी, थीं सोयी हुई 
उल्लासित आँखें जागती हैं  
तरुण हृदय संग बंधी हुई 
खोल गया हो जैसे कोई बंद हृदय के द्वार 
हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार


विस्मृत यादें फिर झूमी 
नाच रही संग रंगभूमि
उन्मुक्त भाव संग झूम रहे  
ज्यों घुंघरू बाँध कोई बाला झूमी     
सूनी साजों पर कोई छेड़ गया फिर मन का तार 
हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार





@फोटो:  गूगल से साभार

रविवार, 7 जुलाई 2013

धूप और छाँव







जो चुनना हो 
धूप और छाँव में 
चुनूँगा धूप 
क्यूँकी छाँव ....
छाँव तो मिथ्या है 
बहरुपी है


मगर धूप 
धूप का रूप नहीं 
अरूप है 
सत्य है धूप का अस्तित्व 
वह रूप नहीं बदलती


धूप जीवन 
भरती है 
पेड़ों में 
पौधों में 
फसलों में
धरा का कण कण 
होता पोषित 
धूप से 


जिसने धूप स्वीकारा 
फला फूला
और जो बैठा रहा 
छाँव तले  
उसे क्या मिला ! 
  

सच कहूँ तो 
धूप उतनी ही सच्ची है 
जितना संघर्ष 
और छाँव उतनी ही मिथ्या 
जितना सुख 




@फोटो:  गूगल से साभार 
 

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