शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

क्या हुआ जो मातम का मंजर है !

(फोटो गूगल से साभार)
 
जमीन जो कभी
हरी भरी थी
फसलों से
अब बंजर है
किसान जो बोया करता  था
उन फसलों को
घर में उसके
मातम जैसा मंजर है
किसी दैनिक के
पांचवे पृष्ठ पर
यह खबर छपी है
और पहले पन्ने पर
प्रधानमंत्री की
उद्योगपतियों संग
एक बड़ी तस्वीर लगी है
साथ में है
ख़बरें राजनीति क्रिकेट और ग्लैमर
बिक रहा बाजार में यह
देखो कैसे धड़ा धड़ !



शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को !

(फोटो गूगल से साभार)

मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

चाँद की अभिलाषा उत्कट हो रही
रात रागिनी भी प्रगट हो रही
'कविता' की वो लौ जगमगा रही
'ज्योत' प्रेम की फैला रही 
भाव कई तैयार अब, मधुर मीत समर्पण को

मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

बांसुरी की तान गहरी हो रही
गीत, झील में कोई घुल रही
तारकों का झुण्ड बढ़ रहा
भ्रमर, पुष्प पर प्रेम गढ़ रहा
है भ्रमर तैयार अब, पुष्प के आलिंगन को

मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

मिलते हुए गगन पर, रंग श्याम और गुलाबी
बहती हुई धरा पर, समीर संग प्रेम सुरभि
उष्ण साँसों में भर रही शीतलता
चलित हो रही मन की जड़ता
कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को

मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

मंगलवार, 15 जनवरी 2013

तुझे खाक खाक कर सकते हैं !

(फोटो गूगल से साभार)


हमें कोई कमजोर ना समझे
हमने लिखे कई अफ़साने हैं
अखंड भारत को ललकारा जब जब
जान पर खेले कई दीवाने हैं

बांग्लादेश से कारगिल तक
अरे ! कितनी बार धूल चटाई है
फिर भी तेरी, ओ नादान !
अक्ल ठिकाने नहीं आई है

तेरे अंदर बहता है पानी
देखी तेरी कई नादानी
दौड़े लाल रक्त हममें
हर पल सुनाता शौर्य कहानी

बर्बरता की परिभाषाएँ
हम क्षण में ही बदल सकते हैं
चिंगारी मत लगा
आग लगा उलटा तुझे
खाक खाक कर सकते हैं

इतिहास उलट कर देख ले
तुझे तेरा चेहरा दिख जाएगा
अपनी हद में रहना सीख
हरदम मुँह की खाएगा
और जो नहीं बदल सका खुद को
तो दिन दूर नहीं
जब धरती के नक़्शे में
तू खुद को ढूँढता रह जाएगा 


भारत के वीर सपूतों को शत शत नमन !
जय हिन्द !

शनिवार, 12 जनवरी 2013

भीगी सी एक बूंद ओस !

(फोटो गूगल से साभार)
ओस की एक बूंद
विश्रांत
बैठी हुई
घास की फुनगी पर
रात भर जीया जिसने
एक जिन्दगी चाँदनी

सुबह की पहली किरण
झाँक रही आर पार उसके
पारदर्शी होता हर कुछ
उसकी पूरी जिन्दगी

जो भेद गयी किरणें
फूट निकला इन्द्रधनुषी रंग
अल्प जिन्दगी की संपूर्णता में
भीगी भीगी
मूक सजीव बनी वो
अभी भी झूल रही कैसे
देखो कितने इत्मीनान से !

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