शनिवार, 31 मई 2014

खुल रहे दिल के कई राज फिर से

(फोटो गूगल से साभार)


तेरी तस्वीर देखी है मैंने आज फिर से 
खुल रहे दिल के कई राज फिर से 

खो गयी है मेरी मुकम्मल रात कहीं 
जोड़ तारों को बजा रहा साज फिर से 

धड़कने खामोश बैठी थी तनहा अकेली 
धड़कनों को दे गया कोई अल्फाज फिर से 

आँखों में अरमानों का उत्सव है कैसा 
मायूसी में मुस्कानों का आया रिवाज फिर से 

दिल दरिया है मुहब्बत का  कैसे तुम्हें बताए 
दिल में बन रहा कहीं नया एक ताज फिर से 

तेरी तस्वीर देखी है मैंने आज फिर से 
खुल रहे दिल के कई राज फिर से

सोमवार, 5 मई 2014

प्रश्न श्रृंखला !


(फोटो गूगल से साभार)



आखिर क्या मिलेगा ऐसा करने से ?
आखिर क्यों, किसलिए ?
ऐसे कई प्रश्न 
हर पल उठते हैं ज़ेहन  में 
प्रश्नों की एक श्रृंखला 
अनजाने मन में ही सही 
बन रही होती है कहीं 
किसी कोने में 
लेकिन हम बेपरवाह से हुए 
नकारते रहते हैं  
उसके वजूद को 
पर जब मन  बँध जाता है 
उसके पाश में पूरी तरह 
तब खुद को छुड़ाने की कोशिश में 
हम ढूंढना शुरू करते हैं उत्तर 
और जब ढूंढते हैं उत्तर 
हर उत्तर एक प्रश्न लिए खड़ा होता है 
और प्रश्नों की श्रृंखला 
घटने की बजाय 
बढ़ती चली जाती है 
रह जाते हैं इस तरह 
कई प्रश्न अनुत्तरित 
और अंत में 
दफ़न हो जाते हैं 
कई प्रश्न, यूँ ही  
कब्र के अंदर !




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