(फोटो गूगल से साभार) |
आखिर क्या मिलेगा ऐसा करने से ?
आखिर क्यों, किसलिए ?
ऐसे कई प्रश्न
हर पल उठते हैं ज़ेहन में
प्रश्नों की एक श्रृंखला
अनजाने मन में ही सही
बन रही होती है कहीं
किसी कोने में
लेकिन हम बेपरवाह से हुए
नकारते रहते हैं
उसके वजूद को
पर जब मन बँध जाता है
उसके पाश में पूरी तरह
तब खुद को छुड़ाने की कोशिश में
हम ढूंढना शुरू करते हैं उत्तर
और जब ढूंढते हैं उत्तर
हर उत्तर एक प्रश्न लिए खड़ा होता है
और प्रश्नों की श्रृंखला
घटने की बजाय
बढ़ती चली जाती है
रह जाते हैं इस तरह
कई प्रश्न अनुत्तरित
और अंत में
दफ़न हो जाते हैं
कई प्रश्न, यूँ ही
कब्र के अंदर !
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंसादर आभार!
वैचारिक भाव लिए रचना....
जवाब देंहटाएंकई बार यह भी होता है कि प्रश्न का उत्तर ही नहीं होता है. पर पूरे प्रक्रिया से ज्ञानवर्धन हो जाता है.
जवाब देंहटाएंआकाश में बादलों का आना जाना
जवाब देंहटाएंवैसे ही है जैसे मन में प्रश्नों का आना
New post ऐ जिंदगी !
प्रश्नों के उत्तर नहीं चाहते हम ... अपने आप से तर्क करना चाहते हैं ... किसी की सत्ता नहीं मानते ...
जवाब देंहटाएंफिर उलझते जाते हैं ... अर्थपूर्ण रचना ...
आखिर क्या मिलेगा ऐसा करने से ?
जवाब देंहटाएंआखिर क्यों, किसलिए ?
ऐसे कई प्रश्न
हर पल उठते हैं ज़ेहन में
प्रश्नों की एक श्रृंखला
सृजनशीलता की व्याकुलता से कसमसाते प्रश्नों की जीवंत अभिव्यक्ति