शनिवार, 28 जुलाई 2012

एक दुनिया माटी की !

                                     (फोटो गूगल से साभार)

माटी की छुलनी
माटी की कड़ाही
माटी का बेलन
माटी का चकला 
तवा माटी का
दल घोटनी माटी की
एक चूल्हा भी है
वो भी माटी का
एक पूरा घर
माटी का
सबकुछ
बस माटी का !

और इस घर में
कितनी खुशियाँ हैं
बसती यहाँ
एक पूरी दुनिया है
एक पूरी दुनिया
जहाँ रहती है
अपनी प्यारी सी मुनिया
वही मुनिया
जिसने अपने माटी सने
हाथों से
खुद रचा है
इस दुनिया को  
अपनी छोटी सी दुनिया
माटी की दुनिया
खुश है जहाँ
छोटी सी मुनिया
बहुत खुश !

अब मुनिया
हो गयी है बड़ी
अब पास उसके
माटी के बर्तन नहीं
चमकीले बर्तन हैं
माटी का घर नहीं
पक्के का घर है
बहुत कुछ है यहाँ
सबकुछ है
अब ये ही है
दुनिया उसकी
उसी  मुनिया की
जो हो गयी है बड़ी
पर थोड़ी सी चिंतित
थोड़ी व्यथित 
थोड़ी उदास ! 

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

कब भीगता हूँ 'अकेला'




मिली संजीवनी 
उस सावन को 
जो भीगा 
कल के सावन में 
सुप्त अंतर 
हुआ हरित 
मिलने लगा 
बूंद बूंद में गीत 

हाँ, वो ही गीत 
जो हम तुम 
अक्सर 
सावन में गाते 
और भीगे भीगे से 
अंजुरी में 
कितने सावन 
भर कर लाते

सच बोलूँ
तो भीगे भीगे 
सावन में 
तुझे संग संग 
जी लेता हूँ 
पास नहीं 
तो क्या हुआ 
सावन की 
इन बूंदों में 
दूरियों को 
पी लेता हूँ 

मुझे पता है 
तुम भी 
हो भीगी
कल रात में 
मैं कब 
भीगता हूँ अकेला 
सावन की 
बरसात में 
बताओ जरा 
कब भीगता हूँ 
'अकेला'
ऐसे बरसात में 
बताओ जरा !

शनिवार, 14 जुलाई 2012

संभाल लो, संभल जाओ आज !

(फोटो गूगल से साभार)

 कुछ दिनों पहले हमारे देश के एक हिस्से में एक लड़की के साथ कुछ लोगों ने जो बदसलूकी की वो बड़े ही शर्म की बात है | आजादी के इतने साल बाद भी ऐसी स्थिति देखकर बहुत दुःख होता है | देश के कई अन्य हिस्सों से लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ ऐसे अमानवीय व्यवहार की खबर आए दिन अखबारों, समाचार पत्रों में पढ़ने को मिल ही जाता है |  हमें बचपन में एक श्लोक पढ़ाया जाता था "यत्र नारी पूज्यते ,तत्र देवता रमन्ते" जिसका मतलब आपलोगों को तो पता ही होगा फिर भी मैं यहाँ लिख देता हूँ कि "जहाँ नारी की पूजा होती है वहीं ईश्वर का वास होता है " | अब पूजा का मतलब अगरबती और धुप दीप से पूजा करने से तो है नहीं  इतना तो सबको पता ही होगा |  ज्यादा लिखने का कोई मतलब नहीं बनता | लिखने वालों ने कितना लिखा और हमारी इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने गुवाहाटी वाली खबर को बड़े सक्रिय होकर दिखाया भी |  धन्यवाद और साधुवाद ! इस मीडिया को | कई 'पशु' वहाँ मौजूद थे ('पशु' का मतलब तो समझते ही होंगे आप) जो उस लड़की के साथ अपनी 'जाति' के हिसाब से बर्ताव कर रहे थे |  अब पशुओं से इंसानियत की आशा रखना ये तो मूर्खता ही है, बोलिए है की नहीं .... | कुछ 'पशुओं' को तो गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन अभी भी कुछ स्वतंत्र घूम रहे हैं | ऐसे पशु हमारे समाज और देश दोनों के लिए खतरा हैं | इनकी स्वतंत्रता और प्रशासन की निष्क्रियता दोनों एक ही सिक्के के दो  पहलू हैं | हाँ, हमारी पुलिस, प्रशासन और सरकार भी तभी सक्रिय होती है जब ये मीडिया सक्रिय होता है क्यूँकी सरकार के अन्य मीडियम (तात्पर्य 'माध्यम' से है )  तो काम करते नहीं, जंग लग चुकी है उनमें | सरकार की कोई गलती नहीं, गलती तो मीडिया की है जो इतनी देर बाद खबर दिखाती है | 'लाईव' दिखाते तो शायद सारे पशु अभी जेल में होते | मैंने कुछ गलत कहा क्या .... गलती के लिए माफ़ी चाहूँगा ! प्रशासन को कुछ कहना बेकार है क्यूँकी उनके कानों पर तो जूं रेंगने से रही |  और एक बात, ये तो देश के एक हिस्से में होने वाली घटना है जो मीडिया में आई और हमें पता चला, पर आए दिन ऐसी कई घटनाएँ हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में घटती रहती हैं | लड़कियों, महिलाओं के साथ ऐसे कई दुर्व्यवहार सुनने को मिल ही जाते हैं |  हमारे देश में जहाँ नारी नर से पहले आती है , जहाँ 'राम-सीता', 'कृष्ण-राधा' न कहकर 'सीता-राम' और 'राधे-कृष्ण' बुलाते हैं, जहाँ अपनी धरती को हम 'माँ' का दर्जा देते हैं वहाँ किसी भी नारी के साथ अमानवीय व्यवहार और उसे अपमानित करना एक तरह से भारत माता का अपमान है और हम सब के लिए शर्म की बात | कहीं ना कहीं हम आप भी इसके जिम्मेवार हैं (कहने का तात्पर्य 'आम इंसान' से है, अन्यथा ना ले), क्यों जरा सोचिये  .... सोचने के लिए मैंने आप पर छोड़ दिया !  बस अपनी कुछ पँक्तियों के साथ अपनी बातों को विराम देना चाहूँगा, शायद किसी की इंसानियत जाग उठे ......


(फोटो गूगल से साभार)

















ये कैसा दृश्य है                       
'मानवता' अदृश्य है
अभिशापित, कलंकित
हुई सी रात
मर गया था शहर
मर गए थे जज्बात
बेच आए थे 'वो' शर्म
एक अकेली पर
मिलकर सारे
दिखा रहे थे दम
शर्म करो बुजदिलों
शर्म करो शर्म
सुनता आ रहा हूँ कि
होता जहाँ नारी का सम्मान
बसते हैं वहीं भगवान
तेरे इस कृत्य ने
किया है भारत माता का अपमान
सुन लो 
ओ राष्ट्र के कर्ता धर्ता !
हो सके तो
अपना 'पुरुषार्थ' जगाओ
और नारी का 'सम्मान' बचाओ
और हे इंसान!
अगर तुम 'जिंदा' हो
और जाग रहे हो
तो 'सबूत' दो
आवाज लगाओ
हाथ मिलाओ
और ऐसे 'कुकृत्यों'
को जड़ से मिटाओ
तुम्हारे हाथों में है
भारत की 'लाज'
देर ना हो जाए कहीं
संभाल लो,
संभल जाओ आज !                                                        

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

श्री गुरुवे नमः




आज गुरुपूर्णिमा है और मैं कुछ लिखूँ ऐसी इच्छा बार बार मन में हो रही है |  जरा सोचिये जब आप से पूछा जाए कि आपके जीवन में गुरु का क्या महत्व है, तो मैं सोचता हूँ कि ज्यादातर लोगों का जवाब होगा 'बहुत ज्यादा' और यह सही भी है क्योंकि बिना गुरु के आप चल ही नहीं सकते | सोचिये जरा आपके अपने सबसे पहले गुरु के बारे में जिसका आपके जीवन में सबसे ज्यादा महत्व है  |  जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ  'माँ'  की,  सबसे पहली गुरु जो हमें चलना, बोलना सीखाती है |  हममें सही संस्कार भरती है, और तो और समय समय पर जब कभी हम कुछ गलत कर रहे होतें हैं या राह भटक रहे होतें है वही है जो हमें बिखरने से बचाती है | वो ही है जो हमारे व्यक्तित्व निर्माण की नीव रखती है | उस माँ को आज शत शत नमन !  उसी तरह पिता की भूमिका एक गुरु के रूप में अस्वीकार नहीं कर सकते | माता पिता के अलावे जिंदगी में ऐसे कई लोगों से मुलाक़ात होती है जिन्हें हम गुरु का स्थान दे सकते हैं | आज के सामाजिक परिपेक्ष्य में गुरु की भूमिका बदली है | केवल किताबी ज्ञान देने वाले गुरु नहीं कहे जा सकते | गुरु तो वस्तुतः तभी गुरु बनता है जब वो हमें सही संस्कार और ज्ञान से हमें समाज में ही नहीं बल्कि जीवन में ऊपर उठने में मदद करे | ऊपर उठने का आशय ज्यादातर लोग आर्थिक दृष्टिकोण से समाज में मजबूत होने के तौर पर देखते हैं, जबकि मेरा आशय इससे नहीं है | आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कहना चाहता हूँ | आज के समाज के बहिर्मुखी उत्थान के लिए गुरु की भूमिका काफी अहम हो जाती है, चाहे वो माता-पिता, अभिभावक या कोई और हो | सही ही कहा गया है -
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः  ॥

मैं अपने माता-पिता और सारे गुरुजनों को प्रणाम करता हूँ और साथ ही विश्व के उन सारे गुरुओं को नमस्कार करता हूँ जिन्होंने किसी न किसी रूप में विश्व और लोक कल्याण के लिए अपना महती योगदान दिया है |

गुरु को समर्पित कुछ पंक्तियाँ मेरी तरफ से  :


हे गुरु !
ये जग तुम बिन अधूरा                                                  
दिया उजाला 
तूने
दूर किया 
तूने तिमिर अँधेरा
तेरी वजह से
है ये सुनहला धूप
और ये आशाओं भरा सवेरा


अदृश्य परंतु
समाहित
जिंदगी के पल पल में
चल अचल
मुश्किल सी हर डगर में
तुम हाथ थामे चलते
थके हुए प्राणों में
 नित्य नव ऊर्जा भरते

हे गुरु !
तुम शीतल जल की धारा
बहा ले जाते
हर संताप हमारा
तभी तो तुम
हमें सबसे प्यारा
तेरी चरणों में सदा
झुके शीश हमारा


हे गुरु !
ये जग तुम बिन अधूरा
दिया उजाला तुने
दूर किया तुने तिमिर अँधेरा
तेरी वजह से
है ये सुनहला धूप
और ये आशाओं भरा सवेरा


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