आज गुरुपूर्णिमा है और मैं कुछ लिखूँ ऐसी इच्छा बार बार मन में हो रही है | जरा सोचिये जब आप से पूछा जाए कि आपके जीवन में गुरु का क्या महत्व है, तो मैं सोचता हूँ कि ज्यादातर लोगों का जवाब होगा 'बहुत ज्यादा' और यह सही भी है क्योंकि बिना गुरु के आप चल ही नहीं सकते | सोचिये जरा आपके अपने सबसे पहले गुरु के बारे में जिसका आपके जीवन में सबसे ज्यादा महत्व है | जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ 'माँ' की, सबसे पहली गुरु जो हमें चलना, बोलना सीखाती है | हममें सही संस्कार भरती है, और तो और समय समय पर जब कभी हम कुछ गलत कर रहे होतें हैं या राह भटक रहे होतें है वही है जो हमें बिखरने से बचाती है | वो ही है जो हमारे व्यक्तित्व निर्माण की नीव रखती है | उस माँ को आज शत शत नमन ! उसी तरह पिता की भूमिका एक गुरु के रूप में अस्वीकार नहीं कर सकते | माता पिता के अलावे जिंदगी में ऐसे कई लोगों से मुलाक़ात होती है जिन्हें हम गुरु का स्थान दे सकते हैं | आज के सामाजिक परिपेक्ष्य में गुरु की भूमिका बदली है | केवल किताबी ज्ञान देने वाले गुरु नहीं कहे जा सकते | गुरु तो वस्तुतः तभी गुरु बनता है जब वो हमें सही संस्कार और ज्ञान से हमें समाज में ही नहीं बल्कि जीवन में ऊपर उठने में मदद करे | ऊपर उठने का आशय ज्यादातर लोग आर्थिक दृष्टिकोण से समाज में मजबूत होने के तौर पर देखते हैं, जबकि मेरा आशय इससे नहीं है | आप समझ सकते हैं कि मैं क्या कहना चाहता हूँ | आज के समाज के बहिर्मुखी उत्थान के लिए गुरु की भूमिका काफी अहम हो जाती है, चाहे वो माता-पिता, अभिभावक या कोई और हो | सही ही कहा गया है -
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
मैं अपने माता-पिता और सारे गुरुजनों को प्रणाम करता हूँ और साथ ही विश्व के उन सारे गुरुओं को नमस्कार करता हूँ जिन्होंने किसी न किसी रूप में विश्व और लोक कल्याण के लिए अपना महती योगदान दिया है |
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
मैं अपने माता-पिता और सारे गुरुजनों को प्रणाम करता हूँ और साथ ही विश्व के उन सारे गुरुओं को नमस्कार करता हूँ जिन्होंने किसी न किसी रूप में विश्व और लोक कल्याण के लिए अपना महती योगदान दिया है |
गुरु को समर्पित कुछ पंक्तियाँ मेरी तरफ से :
हे गुरु !
ये जग तुम बिन अधूरा
दिया उजाला तूने
दूर किया तूने तिमिर अँधेरा
तेरी वजह से
है ये सुनहला धूप
और ये आशाओं भरा सवेरा
अदृश्य परंतु
समाहित जिंदगी के पल पल में
चल अचल
मुश्किल सी हर डगर में
तुम हाथ थामे चलते
थके हुए प्राणों में नित्य नव ऊर्जा भरते
हे गुरु !
तुम शीतल जल की धारा
बहा ले जाते
हर संताप हमारा
तभी तो तुम
हमें सबसे प्यारा
तेरी चरणों में सदा
झुके शीश हमारा
हे गुरु !
ये जग तुम बिन अधूरा
दिया उजाला तुने
दूर किया तुने तिमिर अँधेरा
तेरी वजह से
है ये सुनहला धूप
और ये आशाओं भरा सवेरा
सुन्दर भावनाएं...सुन्दर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंआपको भी शुभकामनाएं.
अनु
माँ, फिर पिता, फिर टीचर फिर वो सभी जो जीवन में कुछ न कुछ सिखा जाते हाँ गुरु से कम नहीं होते ... अच्छी रचना है गुरु के भाव लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा शिवनाथ जी!
जवाब देंहटाएं"हाँ ये सच है कि गुरु हमारे जीवन के कि वह अमूल्य शक्ति हैं जिस अमूल्य शक्ति को प्राप्त कर हम इस संसार में जन्म से लेकर जीवन के अंत तक नित्य अच्छे कार्य कि शुरूआत करतें हैं और आगे भी अच्छे कार्य करने कि प्रेरणा मिलती हैं और उसको अपनाके हम सभी प्राणियों को खुश रखतें हैं"
अतः आपने सही ही कहा -
"गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥ "
मैं भी उस सद-गुरु के
चरणों में सदा शीश झुकता हूँ
बहुत सुन्दर बोधपूर्ण प्रस्तुति है.
जवाब देंहटाएंगुरु अज्ञान रुपी अन्धकार का नाश करने वाले हैं.
जब जीवन में 'तत्व ज्ञान' को सीखने की,जानने की उत्कट
इच्छा होती है,तभी हम शिष्य बनने की ओर अग्रसर
होते हैं. और हमारी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए
तब परमात्मा ही गुरु रूप में प्रकट होते हैं.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
हे गुरु !
जवाब देंहटाएंये जग तुम बिन अधूरा
दिया उजाला तुने
दूर किया तुने तिमिर अँधेरा
तेरी वजह से
है ये सुनहला धूप
और ये आशाओं भरा सवेरा
bahut sundar.....
टिप्पणी और उत्साहवर्धन के लिए आपसबों को धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंअच्छा सन्देश
जवाब देंहटाएंअदृश्य परंतु
जवाब देंहटाएंसमाहित जिंदगी के पल पल में
चल अचल
मुश्किल सी हर डगर में
तुम हाथ थामे चलते
थके हुए प्राणों में
नव उर्जा नित्य भरते
....गुरु के प्रति श्रद्धा और भक्ति की उत्कृष्ट प्रस्तुति...
संक्षिप्त सुन्दर प्रस्तुति -
जवाब देंहटाएंहे गुरु !
ये जग तुम बिन अधूरा
दिया उजाला तुने
दूर किया तुने तिमिर अँधेरा
तेरी वजह से
है ये सुनहला धूप
और ये आशाओं भरा सवेरा
अच्छा बहुत अच्छा लिखतें हैं आप .बस थोड़ा सा वर्तनी पे और दे लें ध्यान ,तो बन जाए आप महान ...
शुद्ध करें -'तूने 'और ऊर्जा लिखें तुने और उर्जा के स्थान पर (हाँ उष्मा ठीक है ,उषा ठीक है ...).कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
सोमवार, 9 जुलाई 2012
जाएं शौक से माल में लेकिन इस पर भी गौर करें ...
जाएं शौक से माल में लेकिन इस पर भी गौर करें ...
http://veerubhai1947.blogspot.de/
धन्यवाद वीरुभाई जी !
जवाब देंहटाएंमैंने सुधार कर लिया है !!
ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया !!
खुबसूरत अभिव्यक्ति ,सुन्दर भावों का संयोजन .
जवाब देंहटाएंआपको इस अवसर पर बधाई .
bahut sundar rachna .badhai
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया द्रुत टिपण्णी के लिए .स्वागतेय , पहल आपकी .
जवाब देंहटाएंकरा दे स्पर्श
जवाब देंहटाएंमाँ की चरणों का
और लगा दे कोई
मिटटी मेरे बचपन की
कि मैं जिंदा हो जाऊँ फिर से
और चाँद उगने लगे
मेरे घर की देहरी पर
एक बार फिर से
हाँ, वैसे ही फिर से
बहुत सुंदर .....
गुरु को समर्पित भी अच्छी कविता है ....!!
गुरु को समर्पित अच्छी कविता है .
जवाब देंहटाएंहे गुरु !
जवाब देंहटाएंये जग तुम बिन अधूरा
दिया उजाला तुने
दूर किया तुने तिमिर अँधेरा
तेरी वजह से
है ये सुनहला धूप
और ये आशाओं भरा सवेरा
एक सच्चा गुरु जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है।
लेख और कविता दोनों प्रभावशाली हैं।
गुरु बखान तो हो लिया अब अगली रचना करो कलम उठाओ शिवनाथ कुमार .शुक्रिया आपके ,ब्लॉग पर आनेका, टिपियाके उत्साह बढाने का .
जवाब देंहटाएं@वीरुभाई : धन्यवाद आपका !
जवाब देंहटाएंलीजिए आपकी बात मैंने सुन ली !
बहुत - बहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएं:-)