शुक्रवार, 22 मार्च 2013

आओ पावन होली मनाएँ

गत वर्ष होली के अवसर पर मैंने यह कविता लिखी थी। यह कविता दैनिक जागरण समाचार पत्र में प्रकाशित भी हुई थी। आज छुट्टियों में घर निकल रहा हूँ सो बहुत खुश हूँ। होली मन मस्तिष्क पर दस्तक दे रहा हैं और एक आनंद का संचार हुए जा रहा है। आपसबों  को होली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ :-)




चलो चाँद के सुनहले चेहरे पर
थोड़ा सा हरा रंग लगाएँ
रात का रंग श्यामल
लेप आएँ उसपर थोड़ा रंग धवल

हरी पत्तियों से छनकर जो आ रही
सुबह की सुनहरी धूप
भरकर मुठ्ठी में आज उसे
मुन्नी बिटिया के गालों पर लगा आएँ

तोड़ बादल का ईक टुकडा गुलाबी
माँ की चरणों को छू आएँ
बड़े बुजुर्गों के हाथों से
आशीर्वाद का टीका लगवा आएँ

गैया , बछड़े और पंछी
सबको अपने पास बुलाएँ
गाँव किनारे नदी गा रही
चलो थोड़ा वो गीत सुन आएँ
हम वादियों में वहाँ फिर
फगुआ गीत गाएँ
फागुन के रंग में आज हम
सारी नदी रंग आएँ

मिट्टी का रंग गाढ़ा
दिन के माथे पर लगा आएँ
सुंदर वसुंधरा हरी भरी
विकारमुक्त हम हो जाएँ
मिलकर संग आज उसके
आओ पावन होली मनाएँ
मिलकर संग आज उसके
आओ पावन होली मनाएँ




@फोटो: गूगल से साभार


बुधवार, 13 मार्च 2013

अक्सर जब पढ़ता हूँ तुम्हें ...



अक्सर जब पढ़ता हूँ तुम्हें 
खुद के खो जाने की वजह
ढूँढता हूँ
और जो
तलाशता हूँ अपना वजूद
तो पाता हूँ
कि पढ़ रहा हूँ खुद ही को
तुम्हारे अन्दर

हर लफ़्ज में
तस्वीर देखता हूँ अपनी
एहसास, जज्बात
क्या कुछ नहीं है
गिले शिकवे
सब कुछ तो हैं

तुम्हें पढ़ते हुए
मिल जाते हैं
कई दफे
तेरी आँखों से बहते
आँसू के कुछ कतरे
जिसे मैं अपने हाथों से
पोंछ रहा होता हूँ
और मिलती है
वो हँसी
वो मुस्कुराहट 
जिसमें कहीं ना कहीं
मैं छुप बैठा होता हूँ

मंद मंद हवा कोई 
छूकर निकलती है मुझे 
और मैं डूब जाता हूँ
तुम्हारे संग
देखते हुए
डूबते सूरज को
सुन रहा होता हूँ
किनारों पर उठते
लहरों के  प्रणय संगीत को

ना जाने क्यूँ
तुम्हें जब
पढ़ना शुरू करता हूँ
तो रुकता नहीं
बस पढ़ता चला जाता हूँ 
सोचता हूँ
कि आखिर कहीं तो अंत होगा
पर नहीं ....
अंतहीन तेरे प्रेम को
अपने अन्दर और विस्तृत पाता हूँ

तुम्हें पढ़कर
सच में ऐसा लगता है
कि तुम और हम
एक ही तो हैं
कहाँ जुदा-जुदा हैं
तुम मुझे पढो
या
मैं तुम्हें
बात एक ही है ...
है ना !



@ फोटो : गूगल से साभार 

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

इक सपना मुनिया का !



(छोटी सी मुनिया अपनी माँ से बोलती हुई .... )

माँ, माँ मैंने
देखा आज एक
सुंदर सा सपना
भैया के जैसा ही है
एक मेरा थैला अपना

भरी पड़ी थी
जिसमें किताब
कॉपी  पेंसिल
बेहिसाब

भैया और हम
दोनों संग संग गए स्कूल
पर माँ तुम मुझे
टिफिन देना गयी भूल

हमने और भैया ने
एक टिफिन में खाया
मास्टर साब को
मैंने  अ, आ लिखकर भी दिखलाया

इतना कहना था मुनिया का
बीच में बापू ने टोका
कितना बात करेगी माँ से
स्कूल जाकर क्या करेगी
कुछ सीख ले माँ से अपने
जिससे तेरी जिंदगी चलेगी

छोटी मुनिया
ने  मुँह बिचकाया
अपना गुस्सा कुछ
इस तरह जतलाया
जाओ मुझको नहीं करना कुछ काम
आज करुँगी सिर्फ आराम



@फोटो : गूगल से साभार





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