बुधवार, 13 मार्च 2013

अक्सर जब पढ़ता हूँ तुम्हें ...



अक्सर जब पढ़ता हूँ तुम्हें 
खुद के खो जाने की वजह
ढूँढता हूँ
और जो
तलाशता हूँ अपना वजूद
तो पाता हूँ
कि पढ़ रहा हूँ खुद ही को
तुम्हारे अन्दर

हर लफ़्ज में
तस्वीर देखता हूँ अपनी
एहसास, जज्बात
क्या कुछ नहीं है
गिले शिकवे
सब कुछ तो हैं

तुम्हें पढ़ते हुए
मिल जाते हैं
कई दफे
तेरी आँखों से बहते
आँसू के कुछ कतरे
जिसे मैं अपने हाथों से
पोंछ रहा होता हूँ
और मिलती है
वो हँसी
वो मुस्कुराहट 
जिसमें कहीं ना कहीं
मैं छुप बैठा होता हूँ

मंद मंद हवा कोई 
छूकर निकलती है मुझे 
और मैं डूब जाता हूँ
तुम्हारे संग
देखते हुए
डूबते सूरज को
सुन रहा होता हूँ
किनारों पर उठते
लहरों के  प्रणय संगीत को

ना जाने क्यूँ
तुम्हें जब
पढ़ना शुरू करता हूँ
तो रुकता नहीं
बस पढ़ता चला जाता हूँ 
सोचता हूँ
कि आखिर कहीं तो अंत होगा
पर नहीं ....
अंतहीन तेरे प्रेम को
अपने अन्दर और विस्तृत पाता हूँ

तुम्हें पढ़कर
सच में ऐसा लगता है
कि तुम और हम
एक ही तो हैं
कहाँ जुदा-जुदा हैं
तुम मुझे पढो
या
मैं तुम्हें
बात एक ही है ...
है ना !



@ फोटो : गूगल से साभार 

24 टिप्‍पणियां:

  1. अंतहीन तेरे प्रेम को
    अपने अन्दर और विस्तृत पाता हूँ
    -----------------------------
    मनभावन मन की आवाज ...आह

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय शिवनाथ जी-

    शुभकामनायें-

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर भाव लिए रचना...
    सुन्दर प्रस्तुति....
    :-)

    जवाब देंहटाएं


  4. अब इससे आगे क्या कहूं ,तू मुझमे हैं ,मैं तुझमें हूँ ......बढ़िया भावसंसिक्त अनुभूत रचना शब्दों का सही बाना पहने हुए .

    जवाब देंहटाएं
  5. तुम्हें पढ़ते हुए
    मिल जाते हैं
    कई दफे
    तेरी आँखों से बहते
    आँसू के कुछ कतरे
    जिसे मैं अपने हाथों से
    पोंछ रहा होता हूँ

    सर बहुत ही अच्छी कविता है । आप ने अपने मन की भावनाओ को बहुत ही अच्छे से बहुत ही सुंदर अंदाज़ में प्रस्तुत किया है। perfect love poem

    जवाब देंहटाएं
  6. तुम्हें पढ़ते हुए
    मिल जाते हैं
    कई दफे
    तेरी आँखों से बहते
    आँसू के कुछ कतरे
    जिसे मैं अपने हाथों से
    पोंछ रहा होता हूँ
    और मिलती है
    वो हँसी
    वो मुस्कुराहट
    जिसमें कहीं ना कहीं
    मैं छुप बैठा होता हूँ .............बहुत भावप्रवण कविता। बहुत ही सुन्‍दर।

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  7. खुद को खोजना वो भी किसी दूसरे के अंदर ... ये तो प्रेम की पराकाष्ठा है ...
    ऐसे ही जीवन बीत जाए तो सफल है ...

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  8. प्रेम में सचमुच ऐसा ही होता है............

    जवाब देंहटाएं
  9. स्नेहमयी भाव..... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  10. तुम मुझे पढो
    या
    मैं तुम्हें
    बात एक ही है ...
    है ना !


    वाह...लाजवाब...बहुत कोमल भावाभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  11. तुम मुझे पढो
    या
    मैं तुम्हें
    बात एक ही है ...
    है ना !
    wah bahut sundar bhav..

    जवाब देंहटाएं
  12. मन के भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  13. कि तुम और हम
    एक ही तो हैं.....very nice.....

    जवाब देंहटाएं
  14. तुम मुझे पढो या मै तुम्हें बात तो एक ही है ना. बहोत खूब ।

    आपका धन्यवाद जो आप मेरे बलॉग पर पधारे, स्नेह बनाये रखें ।

    जवाब देंहटाएं
  15. तुम मुझे पढो
    या
    मैं तुम्हें
    बात एक ही है ...
    है ना !

    ..सच प्यार एकाकार का ही नाम है ..
    वो कहते हैं न "प्रेम गली अति सांकरी जा में दो न" समाय

    जवाब देंहटाएं
  16. सुकोमल भावनाओं को शब्दों में सुंदरता से उकेरा है...

    जवाब देंहटाएं
  17. तुम्हें पढ़कर
    सच में ऐसा लगता है
    कि तुम और हम
    एक ही तो हैं
    कहाँ जुदा-जुदा हैं
    तुम मुझे पढो
    या
    मैं तुम्हें
    बात एक ही है ...
    है ना !

    मानवीय संवेदना के धरातल पर हम सब एक ही हैं...बहुत सुन्दर कविता...बधाई और शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  18. वाह क्या बात है! बहुत सुन्दर!
    http://voice-brijesh.blogspot.com

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