शनिवार, 26 दिसंबर 2015

राह दिखाएँ खुद को

(फोटो गूगल से साभार)



तमस में घिरते 
व्याकुल मन को 
देख रहीं 
अदृश्य निगाहें (मन की)
दीपक लेकर चलता कोई 
पर नहीं खुलती हैं 
बंद निगाहें 

सृजन और विध्वंस 
के मध्य 
दो पाटी में पीसता मन 
मन की व्याकुलता
बाँध ना पाया 
धरा की अपनी सीमाएँ 

निज मन में ही 
शक्ति अकूत 
बाँध सके जो खुद को 
घोर  तमस में दीप जलाए 
राह दिखाएँ खुद को 


गुरुवार, 19 नवंबर 2015

राधे तेरे इंतजार में श्याम अकेला बैठा है

(फोटो गूगल से साभार)


हर्फ़ हर्फ़ गुजरो मेरी कविता से  
और हर शब्द सोना हो जाए
बस लिख दूँ रौशनी 
और रौशन हर इक कोना हो जाए 

फड़फड़ाते पन्नों को 
ना जाने कौन सी हवा लगी है 
तेरी आरजू बन मेरी कविता 
अरमां लिए बस उड़ने लगी है

नीला हुआ करता था कभी 
जो दावत, आज गुलाबी है 
बहके हुए से हैं हर शब्द 
शब्द शब्द शराबी है

भीग रहा मेरी कविता का आँगन 
मन वृंदावन हो बैठा है
युग बदला है देखो कैसा 
राधे तेरे  इंतजार में 
श्याम अकेला बैठा है 


गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

अनमोल उपहार

रात के ११.४५ बजे हैं और मोबाईल पर एक नाम फ़्लैश हो रहा है - रोहित ... कॉलिंग ।  संध्या अभी तक जाग रही है । भला मेट्रो सिटीज में रात को इतनी जल्दी कौन सोता है । कुछ सोच रही थी संध्या और और कुछ देर पहले व्हाट्स एप पे उंगलियाँ टाइम पास कर रही थी । फेसबुक पर अभी अभी एक स्टेटस डाला था और १० मिनट के अंदर १३ कमेंट्स ४७ लाइक्स आ चुके हैं । मोबाईल साइलेंट मोड में रख थोड़ा बालकनी में मेंटल स्ट्रेस कम करने के लिए सिगरेट के धुएँ उड़ाए जा रही थी । या यूँ कहे की अब यह उसकी रोज की आदत बन चुकी है । बिना सिगरेट के नींद कहाँ आती है । आदत से लग गयी है उसको । रोहित .... कॉलिंग अभी तक स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहा है । ३ मिस्ड कॉल और उसके बाद मोबाइल भी चुप हो गयी । सिगरेट के कश लेने के बाद संध्या ने मोबाइल की चुप्पी तोड़ी । ' ३ मिस्ड कॉल्स .... रोहित '  देख संध्या ने मोबाइल के बटन दबाए ।  थोड़ी ही देर में रोहित की मोबाइल की घंटियाँ बजने लगी । रात के लगभग १२.३० बज चुके हैं । ' क्या हुआ रोहित, क्यों कॉल किया अभी …… मैंने तुम्हें मना किया था ना, कॉल नहीं करने को, फिर क्यूँ  किया कॉल ' - संध्या कुछ ज्यादा ही सख्त लहजे से बोली । ' अरे संध्या मेरी बात तो सुनो, तुम ऐसा कैसे कर सकती हो …… तुम समझने की कोशिश क्यूँ नहीं करती .... संध्या आई रियली लव यू ' - और ये बोलते बोलते रोहित की आवाज बैठ सी जाती है । 'बट .... आई डोन्ट लव यू  एंड आई नेवर लव्ड यू , ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी है रोहित  ....  ' । 'तुम्हे मेरी बात बुरी लग रही होगी  पर सच्चाई यही है कि हमलोग एक अच्छे दोस्त हो सकते हैं पर एक अच्छे लाइफ पार्टनर नहीं ', संध्या यह कहते हुए चुप हो जाती है। 'क्यूँ  नहीं हो सकते एक अच्छे लाइफ पार्टनर , आखिर क्या कमी है मुझमें, पढ़ा लिखा हूँ और एक अच्छी जॉब है मेरे पास और दिखने में भी उतना बुरा नहीं हूँ  और मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि तुम्हें बहुत खुश  रखूँगा ' , रोहित पूरी तरह से आवेग में बहा जा रहा था । संध्या बीच में ही टोकती हुई  .... 'रोहित ऐसी बात नहीं है, मुझे पता है कि तुम एक अच्छे दोस्त ही नहीं एक अच्छे इंसान भी हो , लेकिन सच बोलूँ रोहित तो मैं तुम्हारे काबिल नहीं , आखिर तुम्हें मेरी बुराईयाँ क्यूँ नहीं दिखती  … तुम  .... तुम एक सीधे सादे इंसान हो जिसे किसी चीज की बुरी लत नहीं है और मैं एक ऐसी लड़की हूँ जो दिन रात शराब और नशे में धुत रहती है …… तुम और मुझमे ऐसा क्या है जो हमें एक कर सके ' , और यह बोलते हुए एक खामोशी कुछ सेकंड्स के लिए खींच जाती है दोनों के बीच । रोहित ने चुप्पी तोड़ते हुए बोला ' प्यार … 'प्यार' है हम दोनों के बीच जो हमदोनों को एक कर बांधे रखेगी  .... और तुम संध्या , तुम्हें अपनी अच्छाई क्यों नहीं दिखाई देती  …… माना कि तुम्हें नशे की आदत है और इसकी वजह से यदि तुम मुझसे दूर रहना चाहती हो तो यह गलत है  … विश्वास मानो संध्या मैं जहाँ तक तुम्हें जानता हूँ तुम मेरे लिए सबसे बेस्ट हो '। ' याद है मैं एक बार तुम्हारे साथ पार्क गया था और तुमने वहां एक गरीब बच्चे को अपनी गोद में ले उसका माथा सहलाया था और फिर उसे एक आइसक्रीम खरीद कर दी थी और वो बस तुम्हे स्नेह भाव से देखता रहा था ,,,, मैं उस संध्या को पाना चाहता हूँ ' । ' और तो और उस दिन अस्पताल में तुमने उस गरीब को अपने पर्स के सारे पैसे निकाल कर दे दिए थे जो अपनी बेटी के इलाज के लिए वहां आया था पर उसके पास पैसे की कमी हो चली थी ' । ' संध्या मैंने तुममें ऐसी कितनी ही अच्छाईयां देखी है और सबसे बड़ी अच्छाई कि आज भी तुम मेरे भले के लिए मुझे ठुकरा रही हो ' । ' संध्या नशे की आदत आज ना कल छूट जाएगी पर अगर मैंने तुम्हें छोड़ दिया तो फिर ऐसा होगा जैसे मैंने ऊपर वाले से मिले एक अनमोल उपहार को छोड़ दिया है ' । ' संध्या तुम मेरे लिए एक अनमोल उपहार हो  .... प्लीज तुम ऐसा मत सोचना कि बस मैं तुम्हें पाने के लिए कुछ भी बोले जा रहा हूँ ,,, ये मेरे अंदर की सच्चाई हैं संध्या ,,,, प्लीज तुम ना मत बोलो ' । संध्या यह सब खामोश सुने जा रही थी ,,, बिलकुल खामोश और फिर उसने कहा - 'चलो रोहित बहुत बोला,, जा कर सो जाओ और मुझे भी नींद आ रही है ' ।  फिर रोहित ने टोकते हुआ कहा , 'पर  .... कुछ तो बोलो  … ' ।  रोहित के कुछ बोलने से पहले संध्या ने कॉल कट किया और बिछावन पर लेट कुछ सोचने लगी ।  ' रोहित … कालिंग ' स्क्रीन पर फिर से फ़्लैश हो रहा है ।  थोड़ा मुस्कुरात हुए संध्या ने कॉल कट किया और आँखें बंद कर कुछ सोचते हुए अपनी पलकें बंद कर नींद का इंतजार करने लगी  … । 

मंगलवार, 28 जुलाई 2015

मुस्कुराएगा जो सदा


(फोटो गूगल से साभार)


वह तमाशबीन नहीं बना रहा 
औरों की तरह 
उठा और चढ़ गया आसमां पर 
बन कर सूरज चमकने लगा 

रात भर जहाँ नाउम्मीदी पसरी थी  
वहाँ नव ऊर्जा बन बहने लगा 
नव उत्साह लिए साँसों में 
बागों में महकने लगा 

बिना मुश्किलों से डरे 
चुनौतियों को हुंकार भरता  
हर कदम  हर सफर 
हर साँस हर डगर 
हर प्राण ओज भरता 

हर भेदभाव से परे 
सहृदय हर किसी से
मानवता का अर्थ गढ़ता 
एक पथ प्रदर्शक, मार्गदर्शक  
आदर्श की नव नींव रखता 
वो चलता रहा, बस चलता रहा 

वो कभी थका नहीं 
वो कभी झुका नहीं 
क्या कुछ वो गढ़ गया 
पर कभी रुका नहीं 

यह सूरज वह सूरज नहीं 
है अस्त जो हो जाता  
यह, वह सूरज है 
जो हर दिल में
है सदा उदित रहता
मुस्कुराता है सदा 
मुस्कुराएगा जो सदा  


शत शत नमन !!

शनिवार, 13 जून 2015

आधा मन

( फोटो गूगल से साभार )  


कदम दर कदम 
संग चलता है मेरे 
तुम्हारा  'आधा मन'

अक्सर हाथ की 
आड़ी तिरछी रेखाओं में 
ढूंढता हूँ तुम्हारा  
बाकी बचा 'आधा मन'

पर हर बार पाता हूँ 
कुछ अलग सा 
हाँ, बिलकुल अलग  … 
जैसे कुछ कपोल अरमां
और तल्ख़  धूप  में 
लिपटा एक टुकड़ा
बारिश का

मेरे माथे की तीन रेखाएँ 
आज भी जिक्र छेड़ती हैं तुम्हारा
अक्सर आधी रात को 
और आज भी बेवजह 
मुस्कुरा देती हैं 
तुम्हारे 'आधे मन' की 
उस मुस्कुराहट  से 

तुम्हारा भी 'आधा मन' 
कभी पूरा ना हो पाया 
हो सके तो ले जाओ 
अपना 'आधा मन'
ताकि तुम पूर्ण हो जाओ
या फिर दे जाओ 
बाकी बचा 'आधा मन '
ताकि 'हम' पूर्ण हो जाएँ

इसी इंतजार में 
प्रतीक्षारत 
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा  
वही .... 'आधा मन' !




शुक्रवार, 15 मई 2015

झुकी पलकें


(फोटो गूगल से साभार)


झुकी पलकें 
बड़ी ख़ामोशी से 
लम्हा लम्हा 
सहेज रही है 

ओस की एक बूंद 
आ टिकी है पलकों के कोर पर 
और शबनमी हो गयी आँखे 
बस बंद ही रहना चाहती हैं 

रात शतरंज की बिसात बिछाए 
बैठा है 
शह और मात के बीच 

अभी अभी खामोशी टूटी है 
कुछ गिरा है 
जमीं पर आकर 

जो देखा तो 
चाँद बिखरा पड़ा है 
टुकड़ों में 
और पलकें 
अभी भी 
झुकी हैं 
समेटे कुछ ख्वाब 
अपनी परछाईयों में 




बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

ये बिंदिया



(फोटो गूगल से साभार) 




तुम्हारी आँखों में 
सवाल हजार हैं
तुम्हारे माथे की बिंदिया 
उनके जवाब हैं 

तुम बोलो ना बोलो 
ये बिंदिया बोल देती है 
तुम्हारे सारे जज्बात 
यूँ ही खोल देती है 

तुम्हारे रंज 
गिले शिकवे 
सब चुपचाप सुनती है 
तुम्हारी बिंदिया ही तो है 
जो माथे की गहन
रेखाओं के बीच 
खुशियाँ ढूँढ लेती है 

यही बिंदिया है 
जो कर जाती है
हर शाम पूनम 
भर रही होती जो उजाला 
मन में, जिंदगी में 
धीरे धीरे 
मद्धम मद्धम 





शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

भीगी पलकें


भीगी पलकों से 
उनकी मुस्कुराहटें 
गीली हो चली 

खामोशी और मौन में 
भीगता रहा दो मन
बड़ी देर तलक 

दिल की सारी शिकायतें 
सारे गिले शिकवे  
बह गए कहीं 

रात के 
आसमां पर 
काले बादल थे 
बस थोड़ी देर पहले 

अभी चाँद 
उफ़क़ कर 
आ गया है वहाँ 
मुस्कुराते हुए  


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