(फोटो गूगल से साभार) |
तुम्हारी आँखों में
सवाल हजार हैं
तुम्हारे माथे की बिंदिया
उनके जवाब हैं
तुम बोलो ना बोलो
ये बिंदिया बोल देती है
तुम्हारे सारे जज्बात
यूँ ही खोल देती है
तुम्हारे रंज
गिले शिकवे
सब चुपचाप सुनती है
तुम्हारी बिंदिया ही तो है
जो माथे की गहन
रेखाओं के बीच
खुशियाँ ढूँढ लेती है
यही बिंदिया है
जो कर जाती है
हर शाम पूनम
भर रही होती जो उजाला
मन में, जिंदगी में
धीरे धीरे
मद्धम मद्धम
बिंदिया जब माथे पे खिलती है तो पावन होकर सब कुछ कह देती है ...
जवाब देंहटाएंइस बिंदिया के माध्यम से आपभी बहुत कुछ कह गए ...
निशब्द कर दिया शिवनाथ जी
जवाब देंहटाएंदिल की गहराईयों से बनी कविता .....छू गई इस मन को ....आभार
तुम्हारे रंज
जवाब देंहटाएंगिले शिकवे
सब चुपचाप सुनती है......
अँधेरे में भटक जाता हूँ लगती है शीतल चँन्दा सी तुम्हारी बिंदियाँ
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
जवाब देंहटाएंआपको भी सपरिवार होली की बधाई व शुभकामनाएँ !! :) :)
हटाएंबहुत ही सुंदर कविता। आपको होली की ढेरों बधाइयां। इस लिंक पर मेरी नई पोस्ट मौजूद है।
जवाब देंहटाएंNice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.
जवाब देंहटाएंतुम्हारी आँखों में
जवाब देंहटाएंसवाल हजार हैं
तुम्हारे माथे की बिंदिया
उनके जवाब हैं