शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

भीगी पलकें


भीगी पलकों से 
उनकी मुस्कुराहटें 
गीली हो चली 

खामोशी और मौन में 
भीगता रहा दो मन
बड़ी देर तलक 

दिल की सारी शिकायतें 
सारे गिले शिकवे  
बह गए कहीं 

रात के 
आसमां पर 
काले बादल थे 
बस थोड़ी देर पहले 

अभी चाँद 
उफ़क़ कर 
आ गया है वहाँ 
मुस्कुराते हुए  


9 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-01-2015) को "बहार की उम्मीद...." (चर्चा-1855) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. bheengi palkon par ke saath bahut kuch tair gaya....................
    sundar post..

    जवाब देंहटाएं
  3. शिकायतें जब बह जाती हैं .. आसमान साफ़ हो जाता है ...
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  4. अति सुन्दर भाव
    रंग-ए-जिंदगानी
    http://savanxxx.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं
  5. रात के
    आसमां पर
    काले बादल थे
    बस थोड़ी देर पहले

    यही जिन्दगी का फलसफा है ..

    जवाब देंहटाएं
  6. पहले की पांच पंक्तियाँ दिल की गहराइयो
    को टच कर जाती है..वैसे पूरी प्रस्तुति
    सुन्दर भावनात्मक है ......................आभार

    जवाब देंहटाएं

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