बुधवार, 22 मई 2013

पर आईना कभी झूठ नहीं बोलता ....





आईना तो हर किसी को 
उतार लेता है अपने अन्दर 
मगर उतरा हर कोई आईने में 
कहाँ निकाल पाता है खुद को 
उस आईने के अन्दर से
बस कैद हुआ रह जाता है मानो
आईने के मोहपाश में   

यह आईने की खूबसूरती है   
जो बना देता है 
किसी को भी खुबसूरत 
किसी को भी ! 
आईने के सामने 
चाहे जो हो 
जैसा भी हो 
प्यारी ही लगती है 
उसे अपनी मूरत 

पर आईना कभी 
झूठ नहीं बोलता 
आईने की सच्चाई 
है कौन देखना चाहता?
 है कौन स्वीकारना चाहता
उसके नजरिये को 
जिससे है वो औरों को देखता

हम तो खुद की नजरों से
देख रहे होते हैं 
खुद को 
आईने की नजरों से नहीं

और जो देखना शुरू कर दिया 
आईने की नजरों से 
तो सच में
सच से साक्षात्कार 
होता दिख जाएगा 
सच कड़वा हो सकता है 
मगर सच को स्वीकारना 
सत्य  को पाने जैसा है 
और सत्य तो एक ही है ....






@फोटो: गूगल से साभार 











शुक्रवार, 10 मई 2013

दिया बन जल रहा हूँ रात के किनारे पर ....




दिया बन जल रहा हूँ
रात के किनारे पर 
पर एक परिधि है मेरी  
जहाँ तक पहुँच कर 
रुक जाता हूँ 
थम जाता हूँ 
और तिमिर आकाश का विस्तार 
मुझे संघर्ष करने को 
मजबूर कर रहा होता है

मैंने आँखें खोल रखी हैं 
मगर कहाँ कुछ दिखता है 
एक सीमा के बाहर

दो अलग अलग दुनिया हैं 
मेरे लिए  
एक दृश्य 
एक अदृश्य ....
(जिसका अपना अस्तित्व है)
मैं किसे अपना जानूँ  
किसे सच मानूँ

जहाँ एक ओर 
शून्य विस्तार पाता जा रहा है 
वहीं मेरी दृष्टि 
(शायद शून्य से भी अधिक विस्तृत)
सीमाओं में सिमटी जा रही है

मैं किसे सच मानूँ 
उस शून्य को 
या फिर अपनी दृष्टि को ?

मैं आज भी ...
दिया बन जल रहा हूँ 
रात के किनारे पर 





@फोटो: गूगल से साभार

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