सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

माँ का आँचल प्यार भरा !

(फोटो गूगल से साभार)




माँ तेरे यादों की हर चीज 
समेट कर रख दी है 
सहेज कर 
मन में 
जो कभी पानी 
तो कभी 
बादल बन 
बरस जाती हैं 
मन में ही 

मैं सहेजता हूँ उन 
बूंदों को 
मैं बहने नहीं देना चाहता 
उनको 
उन बूंदों में भीगना 
अच्छा लगता है 

माना मन रोता है 
कई बार 
तुम्हें याद कर के 
पर तेरी इन यादों से 
मन सजीव हो उठता है 
जहाँ मायावी  
मुस्कान और आँसू
अपना अस्तित्व खो देते हैं 
और मन 
विश्राम पाता है 
बिलकुल वैसे ही जैसे  
विचलित जल तरंगों को 
कोई किनारा मिल गया हो 
शुकून भरा 
जैसे किसी बालक को मिल गया हो 
माँ का आँचल 
प्यार भरा !


शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

कुछ रात उधार लिया था मैंने !

(फोटो गूगल से साभार) 



पिछली दिवाली पर 
कुछ रात उधार लिया था मैंने  

केशुओं की कांति 
चेहरे का उजाला 
आँखों में सजी 
भावों की रंगोली 
सब अद्वितीय था 
प्रेम के लिए 
प्रेम का श्रृंगार किया था तुमने 
और कुछ रात उधार लिया था मैंने 

उस रात 
हाथ की लकीरें 
राहें बनी थीं 
और सजे थे 
आशाओं के दीये 
उन राहों पर 
फिर भटकते क़दमों को 
अपने क़दमों का साथ दिया था तुमने 
और कुछ रात उधार लिया था मैंने

कुछ बातें थी 
मौन सी 
जो मुखर हुए जा रही थी 
दिवाली के आसमां पर बिखरकर
और कुछ लफ्ज थे 
जो फुलझड़ियों की तरह 
बिखर रहे थे नीचे धरा पर 
अपने कुछ हँसते जज्बात दिए थे तुमने 
और कुछ रात उधार लिया था मैंने 

होता है उजाला अब 
मेरा हर दिन  
उस रात से 
बनती है मेरी हर बात 
अब उस रात से 
उसे स्वप्न कहो 
या कुछ और 
गीली धूप, भीगी मुस्कुराहटें 
और बहुत कुछ  
मिलता है उस रात से 
वो रात, अब मैं लौटा नहीं सकता तुम्हें 
जो पिछली दिवाली, उधार लिया था मैंने !





बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

पशुता मर गयी !

(फोटो गूगल से साभार)



सुना है 
एक पशु की 
बलि दी  
मनुष्यों ने 

और 
उसके बाद 
मनुष्यों के भीतर का 
इंसान   
जाग उठा  
और  अंदर की 
पशुता 
मर गयी !



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