शनिवार, 13 जून 2015

आधा मन

( फोटो गूगल से साभार )  


कदम दर कदम 
संग चलता है मेरे 
तुम्हारा  'आधा मन'

अक्सर हाथ की 
आड़ी तिरछी रेखाओं में 
ढूंढता हूँ तुम्हारा  
बाकी बचा 'आधा मन'

पर हर बार पाता हूँ 
कुछ अलग सा 
हाँ, बिलकुल अलग  … 
जैसे कुछ कपोल अरमां
और तल्ख़  धूप  में 
लिपटा एक टुकड़ा
बारिश का

मेरे माथे की तीन रेखाएँ 
आज भी जिक्र छेड़ती हैं तुम्हारा
अक्सर आधी रात को 
और आज भी बेवजह 
मुस्कुरा देती हैं 
तुम्हारे 'आधे मन' की 
उस मुस्कुराहट  से 

तुम्हारा भी 'आधा मन' 
कभी पूरा ना हो पाया 
हो सके तो ले जाओ 
अपना 'आधा मन'
ताकि तुम पूर्ण हो जाओ
या फिर दे जाओ 
बाकी बचा 'आधा मन '
ताकि 'हम' पूर्ण हो जाएँ

इसी इंतजार में 
प्रतीक्षारत 
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा  
वही .... 'आधा मन' !




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