शनिवार, 27 अप्रैल 2013

नींद में ही तो नहीं हैं ?




कभी कभी 
सपनों के बोझ तले 
दबी  हुई पलकें
खुलना तो चाहती हैं
पर खुल नहीं पाती 

असहज, घुटन सी
महसूस होती है
जब लाख कोशिश करने पर भी 
पलकें नहीं खुलती 

और जब नितांत कोशिशों
के बावजूद
नहीं खुलती हैं पलकें
तो हम छोड़ देते है
प्रयास
हो जाते हैं बिलकुल
शांत और शिथिल 
(जो मिथ्या ही  है)
घोर अशांति, उथल-पुथल लिए
अन्दर ही अन्दर 

पर ना जाने सहसा क्या होता है
हम पलकें खोल बैठे होते हैं
नींद से जाग उठे होते हैं 
.
.
नींद में ही
(फिर से एक मिथ्य,,, सपने के अन्दर जागता मन)

पर जब नींद टूटती है
(सच में जब टूटती है)
और जब होते हैं हम
उस मायाजाल से मुक्त 
कितना शुकून होता है
साँसों की गति थोड़ी तीव्र
मगर गहरी होती जाती है
शनैः शनैः 
अन्दर ही अन्दर 

पर ना जाने क्यों
विश्वास नहीं होता
कि हम नींद से वाकई जाग उठे हैं !
.
.
कहीं फिर से हम
नींद में ही तो नहीं हैं




@फोटो : गूगल से साभार






मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

हर्षित हो "विष" पीना है !




कभी कभी
जब अपने अन्दर के
समंदर को मथता हूँ
बहुत कुछ
प्रगट होता है
बहुत कुछ .....

प्रगट होते हैं
कुछ सुख 
कुछ दुःख
कुछ सपने
(जो सपने ही रह गए )
कुछ उम्मीद
कुछ आशाएँ
कुछ प्रेम
कुछ त्याग
कुछ अनसुलझी उलझन

कुछ सच्चाई
(जो कड़वी है)
कुछ अच्छाई
(जो शायद अब नहीं है)

प्रगट होती है कभी कभी
कोई क्रोधाग्नि 
होती है जो बेताब
सब कुछ भस्मीभूत करने को

मिलती है
जागी जागी सी
एक लम्बी नींद
जो जागने से पहले
बहुत कुछ खो चुकी होती है 

बहुत कुछ मिलता है
इस मंथन से
मगर नहीं मिलता है 
तो वो है "अमृत"
हाँ, "विष" जरुर मिलता है

एक समय था
जब विषपान को स्वयं
नीलकंठ आए थे
मगर आज .....
आज इस विष का पान
कौन करेगा,,,, कौन?

यह समुद्र मंथन
सतत चलते रहना है 
और जिस दिन
मिल जाएगा "अमृत"
उस दिन
हर्षित हो "विष" पीना है !
.
.
(वह अमृत जरुर मिलेगा)

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

एक आईने के टूटने पर




बन गई
सौ कहानियाँ 
एक आईने के
टूटने पर


जब आईना एक था 
तब कहानी एक ही थी
पर टूटते ही
कई कहानियाँ जीवित हो उठी
हर टुकड़े  में एक कहानी
हर कहानी में
एक ही किरदार
पर हर कहानी अलग अलग
है ना विचित्र !

आज उन टुकड़ों को
जोड़ दिया है
फिर से
(क्यों,,, जोड़ नहीं सकते क्या ?)
और जो देखा तो मिली
एक अकेली कहानी
फिर से
सौ नहीं,,,, बस एक
है ना विचित्र !





@फोटो : गूगल से साभार 

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