शनिवार, 27 अप्रैल 2013

नींद में ही तो नहीं हैं ?




कभी कभी 
सपनों के बोझ तले 
दबी  हुई पलकें
खुलना तो चाहती हैं
पर खुल नहीं पाती 

असहज, घुटन सी
महसूस होती है
जब लाख कोशिश करने पर भी 
पलकें नहीं खुलती 

और जब नितांत कोशिशों
के बावजूद
नहीं खुलती हैं पलकें
तो हम छोड़ देते है
प्रयास
हो जाते हैं बिलकुल
शांत और शिथिल 
(जो मिथ्या ही  है)
घोर अशांति, उथल-पुथल लिए
अन्दर ही अन्दर 

पर ना जाने सहसा क्या होता है
हम पलकें खोल बैठे होते हैं
नींद से जाग उठे होते हैं 
.
.
नींद में ही
(फिर से एक मिथ्य,,, सपने के अन्दर जागता मन)

पर जब नींद टूटती है
(सच में जब टूटती है)
और जब होते हैं हम
उस मायाजाल से मुक्त 
कितना शुकून होता है
साँसों की गति थोड़ी तीव्र
मगर गहरी होती जाती है
शनैः शनैः 
अन्दर ही अन्दर 

पर ना जाने क्यों
विश्वास नहीं होता
कि हम नींद से वाकई जाग उठे हैं !
.
.
कहीं फिर से हम
नींद में ही तो नहीं हैं




@फोटो : गूगल से साभार






14 टिप्‍पणियां:

  1. असमझ की स्थिति..सुन्दर अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (28-04-2013) अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो : चर्चामंच १२२८ में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. सुलझी हुई उलझनों का अच्छा चित्रण किया है ......

    जवाब देंहटाएं
  4. इस माया को भेड़ पाना आसां नहीं ...
    नींद में कब थे .. या अब भी हैं .. किसी को क्या पता ... उस मायावी के सिवा ... अच्छी रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
  5. विश्वास नहीं होता
    कि हम नींद से वाकई जाग उठे हैं..........नींद, स्‍वप्‍न, जागृति और जीवन की रहस्‍यात्‍मकता को बहुत अच्‍छे शब्‍द दिए हैं।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया...
    गहन अभिव्यक्ति...

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  7. पर ना जाने क्यों
    विश्वास नहीं होता
    कि हम नींद से वाकई जाग उठे हैं !
    ----------------
    काफी उलझन भरी स्थिति है ... बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत अच्छा लिखते हो आप !!
    बहुत सुन्दर रचना

    नई पोस्ट
    तेरे मेरे प्यार का अपना आशियाना !!

    जवाब देंहटाएं

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