(फोटो गूगल से साभार) |
मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
चाँद की अभिलाषा उत्कट हो रही
रात रागिनी भी प्रगट हो रही
'कविता' की वो लौ जगमगा रही
'ज्योत' प्रेम की फैला रही
भाव कई तैयार अब, मधुर मीत समर्पण को
मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
बांसुरी की तान गहरी हो रही
गीत, झील में कोई घुल रही
तारकों का झुण्ड बढ़ रहा
भ्रमर, पुष्प पर प्रेम गढ़ रहा
है भ्रमर तैयार अब, पुष्प के आलिंगन को
मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
मिलते हुए गगन पर, रंग श्याम और गुलाबी
बहती हुई धरा पर, समीर संग प्रेम सुरभि
उष्ण साँसों में भर रही शीतलता
चलित हो रही मन की जड़ता
कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को
मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
मिलते हुए गगन पर, रंग श्याम और गुलाबी
जवाब देंहटाएंबहती हुई धरा पर, समीर संग प्रेम सुरभि
उष्ण साँसों में भर रही शीतलता
चलित हो रही मन की जड़ता
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बहुत सुन्दर रचना ... बधाई
बहुत बढ़िया है ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय बधाई ।।
achchhi lagi kavita ...
जवाब देंहटाएंकौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को
जवाब देंहटाएंमैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
......आसक्त मन का गुबार फूट निकला ...
बहुत खूब ..
प्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
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धन्यवाद सर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्दों का संयोजनऔर सुंदर रचना बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
बहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंकौन रोक सकेगा अब,आसक्त पागल मन को
जवाब देंहटाएंमैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को,,,,लाजबाब शब्दों का संयोजन,,बधाई शिव कुमार जी,,,
recent post : बस्तर-बाला,,,
कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को ..
जवाब देंहटाएंजब प्राकृति अपना रूप दिखाती है तो मन उन्मुक्त हो जाता है ...
मयूरी सा नाचता है ...
जवाब देंहटाएंबांसुरी की तान गहरी हो रही
गीत, झील में कोई घुल रही
तारकों का झुण्ड बढ़ रहा
भ्रमर, पुष्प पर प्रेम गढ़ रहा
है भ्रमर तैयार अब, पुष्प के आलिंगन को
मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
सूक्ष्म प्रेम के आलोड़न ,सात्विक उद्वेग की सशक्त अभिव्यक्ति रचना में .बधाई .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को
जवाब देंहटाएंमैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
बहुत खूब ..
हो सके तो इस ब्लॉग पर भी पधारे
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मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
जवाब देंहटाएंपत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को.....very good.
बहुत सुन्दर लिखा है....बहुत अच्छी लगी कविता.
जवाब देंहटाएंनिराला प्रकृति चित्रण मन को ताजगी दे गया............वाह !!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंभावों का बहुत सुंदर चित्रण !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता अच्छी प्रस्तुति*****मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
जवाब देंहटाएंपत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
बांसुरी की तान गहरी हो रही
गीत, झील में कोई घुल रही
तारकों का झुण्ड बढ़ रहा
भ्रमर, पुष्प पर प्रेम गढ़ रहा
है भ्रमर तैयार अब, पुष्प के आलिंगन को
मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
मिलते हुए गगन पर, रंग श्याम और गुलाबी
बहती हुई धरा पर, समीर संग प्रेम सुरभि
उष्ण साँसों में भर रही शीतलता
चलित हो रही मन की जड़ता
कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को
मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
bahut achha hai..
जवाब देंहटाएंhttp://urvija.parikalpnaa.com/2013/01/blog-post_22.html
जवाब देंहटाएंसादर आभार !
हटाएंलाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रसुति..
जवाब देंहटाएंकुछ आवारा से ख़याल आये हैं...
जवाब देंहटाएंउछाल दी जो तस्वीर तुम्हारी, आसमां की तरफ,
जिद्दी थी तुम्हारी ही तरह, वक़्त बेवक्त दिख जाती है आसमां में भी....
बहुत खूब,,, लाजवाब :)
हटाएंbahut acchi shaam hai..
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