शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को !

(फोटो गूगल से साभार)

मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

चाँद की अभिलाषा उत्कट हो रही
रात रागिनी भी प्रगट हो रही
'कविता' की वो लौ जगमगा रही
'ज्योत' प्रेम की फैला रही 
भाव कई तैयार अब, मधुर मीत समर्पण को

मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

बांसुरी की तान गहरी हो रही
गीत, झील में कोई घुल रही
तारकों का झुण्ड बढ़ रहा
भ्रमर, पुष्प पर प्रेम गढ़ रहा
है भ्रमर तैयार अब, पुष्प के आलिंगन को

मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

मिलते हुए गगन पर, रंग श्याम और गुलाबी
बहती हुई धरा पर, समीर संग प्रेम सुरभि
उष्ण साँसों में भर रही शीतलता
चलित हो रही मन की जड़ता
कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को

मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

26 टिप्‍पणियां:

  1. मिलते हुए गगन पर, रंग श्याम और गुलाबी
    बहती हुई धरा पर, समीर संग प्रेम सुरभि
    उष्ण साँसों में भर रही शीतलता
    चलित हो रही मन की जड़ता
    ------------------------------------
    बहुत सुन्दर रचना ... बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया है ।

    आदरणीय बधाई ।।

    जवाब देंहटाएं
  3. कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को
    मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
    पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
    ......आसक्त मन का गुबार फूट निकला ...
    बहुत खूब ..

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

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  5. बहुत सुंदर शब्दों का संयोजनऔर सुंदर रचना बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. कौन रोक सकेगा अब,आसक्त पागल मन को
    मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
    पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को,,,,लाजबाब शब्दों का संयोजन,,बधाई शिव कुमार जी,,,

    recent post : बस्तर-बाला,,,

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  7. कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को ..

    जब प्राकृति अपना रूप दिखाती है तो मन उन्मुक्त हो जाता है ...
    मयूरी सा नाचता है ...

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  8. बांसुरी की तान गहरी हो रही
    गीत, झील में कोई घुल रही
    तारकों का झुण्ड बढ़ रहा
    भ्रमर, पुष्प पर प्रेम गढ़ रहा
    है भ्रमर तैयार अब, पुष्प के आलिंगन को

    मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
    पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
    सूक्ष्म प्रेम के आलोड़न ,सात्विक उद्वेग की सशक्त अभिव्यक्ति रचना में .बधाई .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .

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  9. कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को
    मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
    पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को
    बहुत खूब ..


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  10. मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
    पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को.....very good.

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  11. बहुत सुन्दर लिखा है....बहुत अच्छी लगी कविता.

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  12. निराला प्रकृति चित्रण मन को ताजगी दे गया............वाह !!!!!!!!!!!!!

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  13. भावों का बहुत सुंदर चित्रण !

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  14. बहुत अच्छी कविता अच्छी प्रस्तुति*****मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
    पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

    बांसुरी की तान गहरी हो रही
    गीत, झील में कोई घुल रही
    तारकों का झुण्ड बढ़ रहा
    भ्रमर, पुष्प पर प्रेम गढ़ रहा
    है भ्रमर तैयार अब, पुष्प के आलिंगन को

    मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
    पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

    मिलते हुए गगन पर, रंग श्याम और गुलाबी
    बहती हुई धरा पर, समीर संग प्रेम सुरभि
    उष्ण साँसों में भर रही शीतलता
    चलित हो रही मन की जड़ता
    कौन रोक सकेगा अब , आसक्त पागल मन को

    मैं मुग्ध हुआ देखता हूँ 'शाम' को
    पत्थरों पर तराश लूँ तेरे 'नाम' को

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  15. कुछ आवारा से ख़याल आये हैं...
    उछाल दी जो तस्वीर तुम्हारी, आसमां की तरफ,
    जिद्दी थी तुम्हारी ही तरह, वक़्त बेवक्त दिख जाती है आसमां में भी....

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