(फोटो गूगल से साभार) |
एक 'शाम'
जो छोड़ आया था कोई
समंदर की लहरों पर
सुना है
आज तक वो 'शाम'
ढली नहीं
बाट जोहती किसी की
उच्छश्रृंखल सी
बार बार
डूबते किनारे पर
ढूँढती है निशां
किसी के क़दमों की
जो छोड़ आया था कोई
समंदर की लहरों पर
सुना है
आज तक वो 'शाम'
ढली नहीं
बाट जोहती किसी की
उच्छश्रृंखल सी
बार बार
डूबते किनारे पर
ढूँढती है निशां
किसी के क़दमों की
सुना है
ज्वार उठता है कभी कभी
खामोश गहराई से
और लहरें बात करती मिलती हैं
खामोश शाम की तन्हाई से
सवाल एक ही है
आखिर कब
वो 'शाम' ढलेगी
और कब उसे 'मुक्ति' मिलेगी
आखिर कब ?
आखिर कब
वो 'शाम' ढलेगी
और कब उसे 'मुक्ति' मिलेगी
आखिर कब ?
बहुत सुंदर, क्या बात
जवाब देंहटाएंSo beautiful ... loved it !!!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण बहुत सुंदर रचना ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: पिता.
बढ़िया है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें स्वीकारें ||
वैसी शामों की शब होती नहीं शायद. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसुना है
जवाब देंहटाएंज्वार उठता है कभी कभी
खामोश गहराई से
और लहरें बात करती मिलती हैं
खामोश शाम की तन्हाई से
....बहुत सुन्दर अहसास और उनकी अभिव्यक्ति...
तडपते हुवे दिल से रक्खी शाम कैसे ढलेगी ... उसे उसका मुकाम नहीं मिला तो कहाँ जाएगी ..
जवाब देंहटाएंलहरों के साथ लौट-लौट आएगी ,डूब कहाँ पायेगी शाम !
जवाब देंहटाएंbahut sunder panktiya ......
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण रचना,,,
जवाब देंहटाएंवहा बहुत खूब बेहतरीन
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।