सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

इस 'शोर' को मौत क्यूँ नहीं आती !

(फोटो गूगल से साभार)
'शोर' से तंग 
शाम 'मन'
रोकना चाहता है
भाग रहे पैरों को
चाहता है महसूस करना
हवाओं में झूमती
मद मस्त तरंगों को
पर बेबसी
मन की देखी नहीं जाती
शोर की दुनिया
और
दुनिया के शोर में
बेबस फँसे
मन की छटपटाहट 
और नहीं सही जाती
आखिर क्या करें
इस शोर का
इस 'शोर' को
मौत क्यूँ नहीं आती !

मन जब कभी
डूबा होता है
असीम आकाश में
बैठा शांत
खोया होता है कहीं
अस्तित्व विहीन हुआ
सुदूर श्वेत प्रकाश में
तभी
एक शोर कहीं से आकर 
उसे पकड़ ला गिराती है
अपनी  शोर भरी दुनिया में
और मन बस फिर यही सोचता है
कि आखिर क्या करें
इस शोर का
इस 'शोर' को
मौत क्यूँ नहीं आती !

15 टिप्‍पणियां:

  1. दुनिया के शोर में
    बेबस फँसे
    मन की छटपटाहट
    और नहीं सही जाती
    आखिर क्या करें
    इस शोर का
    इस 'शोर' को
    मौत क्यूँ नहीं आती !
    -------------------------------
    निसंदेह एक जबरदस्त और बेहतरीन रचना ..

    जवाब देंहटाएं
  2. I love the beauty of your Hindi poems ... they speak a lot ... I too try Hindi poems, and will be looking for your guidance :-)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद!
      मुझे भी आपकी कवितायेँ काफी अच्छी लगती हैं ... :-)

      हटाएं
  3. उम्दा प्रस्तुति |
    बधाई भाई जी ||

    जवाब देंहटाएं
  4. सच कहें तो शोर तो शाश्वत है जब तक जीवन है ...
    उससे छुटकारा कहाँ ...

    जवाब देंहटाएं
  5. शोर न होना तो सन्नाटा होगा.....
    और भी कष्टकारी.....

    बेहतरीन रचना..
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  6. इस भागती दौड़ती दुनिया में कोई तो है जो सुकून चाहता है शोर नहीं कविता का संगीत सुनता है। सुंदर बिंबों से सजी सुंदर कविता

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर अभिव्यक्ति!
    कभी शोर भला लगता है... तो कभी सन्नाटा सुक़ून देता है...~यही जीवन है..!
    ~सादर!!!

    जवाब देंहटाएं
  8. दुनिया के शोर में
    बेबस फँसे
    मन की छटपटाहट
    और नहीं सही जाती
    आखिर क्या करें
    इस शोर का-----bahut yatharth ki baat kahiu hai badhai

    जवाब देंहटाएं
  9. हमारे परिवेश का एक कठोर सत्य !
    अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं

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