(फोटो गूगल से साभार) |
छोड़ आया हूँ कुछ नगमे
साहिलों पर तेरे नाम से
शाम छुपा कर रख दिया है
वही रेत की ढेर में
कुछ पत्थर उगा आया हूँ
वहाँ आस पास
बस जो सावन आ जाए
झूम लेंगे तब सभी
अभी तो शांत सोए हैं
सब अलसाई नींद में
कश्ती पड़ी वही
थकी सी हार कर
सूरज से मिल लौटा था
दरिया को पार कर
उम्मीद डूबी नहीं
इक सूरज के डूबने से
लो कारवां चल पड़ा फिर
इक चाँद के उगने से
जब नगमें जागेंगे यादों में ढल जायेंगे ...
जवाब देंहटाएंगहरी रचना ...
कश्ती पड़ी वही
जवाब देंहटाएंथकी सी हार कर
सूरज से मिल लौटा था
दरिया को पार कर
उम्मीद डूबी नहीं
इक सूरज के डूबने से
लो कारवां चल पड़ा फिर
इक चाँद के उगने से
bahut sundar abhivyakti shivnath ji
दरिया को पार कर
जवाब देंहटाएंउम्मीद डूबी नहीं
इक सूरज के डूबने से
लो कारवां चल पड़ा फिर
इक चाँद के उगने से
उम्मीदों के साये हमेशा साथ रहते हैं .... अनुपम भाव
बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@दर्द दिलों के
नयी पोस्ट@बड़ी दूर से आये हैं
हर लफ्ज़ मन की धरा पर गहराई से लकीर उकेरता हुआ ! बहुत ही बेहतरीन रचना ! आभार !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी
जवाब देंहटाएंआभार !!
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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