(फोटो गूगल से साभार) |
आँधियों में अक्सर पत्ते टूट जाते हैं
खुशनसीब हैं वो जो दर्द में मुस्कुराते हैं
डूब जाता है सूरज दिन के किनारे पर
चाँद तो अक्सर रात में ही देखे जाते हैं
हर राह हो फूलों से सजा जरुरी नहीं
काँटों से होकर भी मंजिल को पाते हैं
क्या कुछ नहीं निकलता है मंथन से
भोले हैं वो जो विष पीकर भी जी जाते हैं
जमीन से जुड़ा रहना बहुत जरुरी हैं
उड़ते पक्षी सुस्ताने फिर नीचे ही आते हैं
जवाब देंहटाएंजमीन से जुड़ा रहना बहुत जरुरी हैं
उड़ते पक्षी सुस्ताने फिर नीचे ही आते हैं ................गजब।
बहुत खूब कहा है-- खुशनसीब हैं वो जो दर्द में मुस्कुराते हैं
जवाब देंहटाएंजमीन से जुड़ा रहना बहुत जरुरी हैं
जवाब देंहटाएंउड़ते पक्षी सुस्ताने फिर नीचे ही आते हैं
........बेहद सशक्त पंक्तियां ..!
आँधियों में अक्सर पत्ते टूट जाते हैं
जवाब देंहटाएंखुशनसीब हैं वो जो दर्द में मुस्कुराते हैं
bahut khoob ....!!
जमीन से जुड़ा रहना बहुत जरुरी हैं
जवाब देंहटाएंउड़ते पक्षी सुस्ताने फिर नीचे ही आते हैं ........बहुत खूब
बहुत सुंदर .... मेरी कविता समय की भी उम्र होती है पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कविता !!
जवाब देंहटाएंmeri pangantiya
जवाब देंहटाएंaandihyon me akshar patte thut jate hai
wo nasib wale hote hai jo jamin ka charan sparsh kar apne uchanyon par phir chale jate hai
:) :)
हटाएंबहुत सुंदर कविता .......सशक्त लेखन !!
जवाब देंहटाएंहर राह हो फूलों से सजा जरुरी नहीं
जवाब देंहटाएंकाँटों से होकर भी मंजिल को पाते हैं ..
सच कहो तो मंजिल का मज़ा भी तभी आता है जब काँटों से निकल कर मिली हो ...
लाजवाब शेर ...
हर राह हो फूलों से सजा जरुरी नहीं
जवाब देंहटाएंकाँटों से होकर भी मंजिल को पाते हैं
लाजबाब,प्रस्तुति...!
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बहुत अच्छी लगी रचना.
जवाब देंहटाएंPreranadayi
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंलाजवाब....
:-)