(फोटो गूगल से साभार) |
जी करता है
पैमाने में भर लूँ जाम
खाली कर दूँ
अपनी पूरी शाम !
अब कोई बात ना रहे
कहने को
कोई बादल ना उमड़े
बरसने को
कि काश मैं रोक पाऊँ
बहते मन को
दे सकूँ कोई मोड़ नया
जीवन को
लौटना मुश्किल
जो बढ़ गया आगे
बँधता हूँ, बँधता हूँ
बाँध रहे कितने धागे
दिन उतरता है
रात चढ़ता है
पर शाम ठहरा रहता है कहीं
मेरे संग, मेरे अंदर
आखिर क्यों समझ से परे
जीवन का यह आयाम !
जी करता है
पैमाने में भर लूँ जाम
खाली कर दूँ
अपनी पूरी शाम !
अपने बहुत ही अच्छी तरह से और सयुक्त सब्दो को सजोया है मन पर्फुलित होगया यहाँ आके
जवाब देंहटाएंआपकी अनियमितता में एक बात नियमित है.. .. सुन्दर कवितायेँ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर !!!
जवाब देंहटाएंअनु
जीवन आसानी से समझ कहाँ आ पाता है .... फिर ऐसा प्रयास भी क्यों करना ...
जवाब देंहटाएंयही ठीक है कि खाली कर दूं शाम ... पैमाने के नाम ...
1०० फॉलोवर्स के बहुत बहुत शुक्रिया :)))
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी !!
हटाएंसुन्दर कविता
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