कुछ दिन पहले झूम रहा था
जाने क्या हुआ अब उसको
उसके मन की करुण दशा
भला बताए जाकर किसको
सूखे मुरझाए हैं पत्ते, सूखी हर डाली डाली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
जाने क्या हुआ अब उसको
उसके मन की करुण दशा
भला बताए जाकर किसको
सूखे मुरझाए हैं पत्ते, सूखी हर डाली डाली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
गर्मी के गरम थपेड़े
कितनी बार उसने है झेले
सर्दी की ठंढ हवाएँ
झेला हंसकर दृढ अकेले
पर अम्बर में है अब, जब छाई बदरी काली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
उत्सव मना रहा हर कोई
फिर क्यूँ वह शांत पड़ा है
ना जाने किस दर्द की पीड़ा
मूक हुआ वह ठूंठ खड़ा है
कारण उदासी का उसकी , नहीं जानता उसका माली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
देखकर उसकी वेदना
क्या दुखी है कोई और
संग नहीं अभी कोई उसके
यह जीवन का कैसा दौर
पूछ रहा यह प्रश्न खुद ही से, खुद व्यथित तरु की डाली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
देखकर उसकी वेदना
जवाब देंहटाएंक्या दुखी है कोई और
संग नहीं अभी कोई उसके
यह जीवन का कैसा दौर
पूछ रहा यह प्रश्न खुद ही से, खुद व्यथित तरु की डाली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
mann ko chune wali ek bahut hi sunder rachna...
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,,,
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें,सादर!!
RECENT POST : पाँच( दोहे )
बहुत संवेदनशील रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत भाव से ओत प्रोत रचना
जवाब देंहटाएंlatest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।
कुछ दिन पहले झूम रहा था
जवाब देंहटाएंअब जाने क्या हुआ है उसको
उसके मन की करुण दशा
भला बताएं जाकर किसको
सूखे मुरझाए हैं पत्ते, सूखी डाली-डाली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
गर्मी के गरम थपेड़े
कितनी बार उसने झेले
सर्दी की ठंडी हवाएँ
झेला हंसकर दृढ़ अकेले
अम्बर में अब जब छाई बदरी काली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
उत्सव मना रहा हर कोई
फिर क्यूँ वह शांत पड़ा है
ना जाने किस दर्द की पीड़ा
मूक हुआ वह ठूंठ खड़ा है
क्यूं उदास वह नहीं जानता उसका माली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
सोच-सोचकर उसकी वेदना
क्या दुखी है कोई और
संग नहीं अभी कोई उसके
यह जीवन का कैसा दौर
पूछ रहा यह प्रश्न खुद ही से, खुद व्यथित तरु की डाली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली
..........आपकी कविताएं बहुत संवेदनशील और सुन्दर होती हैं।
धन्यवाद :)
हटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें......
जवाब देंहटाएंजिस तरह हम पर्यावरण से खेल रहे हैं लगता है स्थिति बहुत ही भयावह होने वाली है. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंपर्यावरण के प्रति हमारी संवेदना जैसे जैसे खत्म हो रही है ... ऐसे दौर देखने को मिल रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंतरु भी खुद से प्रश्न कर रहे हैं ...
कुछ दिन पहले झूम रहा था
जवाब देंहटाएंअब जाने क्या हुआ है उसको
उसके मन की करुण दशा
भला बताएं जाकर किसको
सूखे मुरझाए हैं पत्ते, सूखी डाली-डाली
कहाँ गई उस तरु की हरियाली ....
बहुत खुबसूरत.............
उसको हंसना आना चाहिए …मंगलकानाएं , आभार
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