रविवार, 4 अगस्त 2013

क्या वह जमीन मुमकिन है ?








मैं कब मांगता हूँ
 पूरा आकाश
 बस मांगता हूँ
 थोड़ी सी जमीन 

जमीन जहाँ
मैं थोड़ी खुशियों की
खेती कर सकूँ
जहाँ रात को
चाँद की थोड़ी रौशनी
समेट सकूँ
और उस रौशनी में नहाता हो
एक छोटा सा घर
जो ईंट पत्थरों से नहीं
मिट्टी और खर से बना हो
जहाँ केवल सोंधी मिटटी की खुशबू
घुली हो हवाओं में
और उन हवाओं में मैं
शुकून की थोड़ी
ठंढी सांस ले सकूँ 

जहाँ कुछ भी
कृत्रिम ना हो
बनावटी ना हो
हर चीज प्रकृति के निकट
इस कृत्रिमता और बनावटीपन ने
उलझा रखा है मुझे 
कैद कर लिया है कहीं मुझे
मेरे ही अन्दर 

कब मुक्त होऊंगा मैं
और कब मिलेगी मुझे
 मेरे सपनों की
वह जमीन
क्या वह जमीन बस एक स्वप्न भर है ? 
क्या वह जमीन मुमकिन है ?

बिन जमीन
भौतिकताओं में बंधा
प्रश्न अब भी खड़ा  
अनुत्तरित
स्वप्न और हकीकत के बीच


@फोटो : गूगल से साभार 

13 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है शिवराज जी! आपने तो दिल जीत लिया । वो चाँदनी मे नहाती कुटियों वाली जमीन कहीं मिल जाए तो मुझे भी बताना - मैं आपका पड़ोसी बनना चाहूँगा ।

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  2. चांद में नहाया घर.....काश मिल पाता आपको हम सबको कृत्रिमता के बिना।

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  3. बहुत ही सुंदर और सशक्त रचना.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  4. ये भी जीवन का द्वंद्व है .... बहुत बढ़िया रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

    जवाब देंहटाएं
  6. आकाश तो वैसे भी संभव नहीं होता छोटी जमीन पाए बिना ... उससे ही सिमिट के अपना आकाश बनता है ... हकीकत के घर की चाह तो सभी को है ...

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  7. बहुत सुन्दर और कोमल भाव लिए खुबसूरत रचना..

    जवाब देंहटाएं
  8. न अरमान खुशियों के
    न चाहत बुलंदी की
    अदद सी ज़िन्दगी दे दे
    हो ज़रा सी शान्ति जिसमे ..

    भावपूर्ण रचना हेतु बधाई।
    कृपया यहाँ भी पधारें http://www.manovriti.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  9. क्या वह जमीन बस एक स्वप्न भर है ?
    क्या वह जमीन मुमकिन है ?
    क्यों मुमकिन नहीं है ? नामुमकिन को मुमकिन बनाने के
    लिए थोडा ज्यादा प्रयत्न की जरुरत होती है !
    बहुत सुन्दर भाव है रचना में, साकार हो यही
    शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर भावपूर्ण और प्रभावी अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं

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