शनिवार, 12 जनवरी 2013

भीगी सी एक बूंद ओस !

(फोटो गूगल से साभार)
ओस की एक बूंद
विश्रांत
बैठी हुई
घास की फुनगी पर
रात भर जीया जिसने
एक जिन्दगी चाँदनी

सुबह की पहली किरण
झाँक रही आर पार उसके
पारदर्शी होता हर कुछ
उसकी पूरी जिन्दगी

जो भेद गयी किरणें
फूट निकला इन्द्रधनुषी रंग
अल्प जिन्दगी की संपूर्णता में
भीगी भीगी
मूक सजीव बनी वो
अभी भी झूल रही कैसे
देखो कितने इत्मीनान से !

18 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. खूबसूरत भाव व्यक्त किये बंधू | बहुत बढ़िया |

    तमाशा-ए-ज़िन्दगी

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  3. धन्यवाद !
    आपको भी मकरसंक्रांति की शुभकामनाएँ !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    मकर संक्रान्ति के अवसर पर
    उत्तरायणी की बहुत-बहुत बधाई!

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    उत्तर
    1. धन्यवाद !
      आपको भी मकरसंक्रांति की शुभकामनाएँ !
      सादर !

      हटाएं
  5. सुन्दर.कोमल भाव अभिव्यक्ति ..
    मकर संक्रांति की शुभकामनाएं...
    :-)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर

    1. धन्यवाद !
      आपको भी मंगल मकरसंक्रांति की शुभकामनाएँ !

      हटाएं
  6. बहुत खूब ... इन्द्रधनुष को साहित्य की नज़रों से देखना अच्छा लगा ...
    बहुत खूब ... आपको मकर संक्रांति की शुभकामनायें ..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर

    1. धन्यवाद !
      आपको भी मंगल मकरसंक्रांति की शुभकामनाएँ !

      हटाएं

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