(फोटो गूगल से साभार) |
आज १ अप्रैल है और जेहन में कुछ यादें ऐसे ही ताजा हुए जा रहीं हैं | सोचता हूँ कुछ लिख ही डालूँ , और जो बातें मुझे गुदगुदा रही हैं थोडा आपलोगों से भी शेयर कर लूँ | "अप्रैल फूल".... इस दिन बहुत मजा किया करते थे हमसब | "हमसब" बोले तो मैं और मेरे मित्रगण | कुछ मजेदार बातें हैं , शायद आपको भी अच्छा लगे | ये अलग बात है कि मैं अपनी मूर्खता का विवरण स्वयं अपने ही मुख से कर रहा हूँ | हाँ, तो मुझे बहुत ही शौक हुआ करता था Fool's डे पर लोगों को मूर्ख बनाने में, या यूँ कहे कि उन्हें छकाने में | वैसे तो छोटे मोटे तरीके से तो हम खूब मजा लिया करते थे लेकिन उनमें से एक ख़ास है जो मै आपलोगों को जरुर बताना चाहूँगा | मैंने अपने एक मित्र को कैसे छकाया वो बताता हूँ | मेरे मित्र के पास उस समय मोबाइल नहीं था (ये अलग बात है कि आज अधिकांश लोगों के पास आपको मोबाइल मिल ही जाएगी ) और अक्सर उसके घर से फ़ोन आया करता था, पास के ही एक बूथ पर | फिर बूथ वाला उसे बुलाकर लाया करता था और तब बात हुआ करती थी | हमने १ अप्रैल को उस बूथ में बैठने वाले बच्चे को कुछ टॉफी दिया और फिर उसे बोला कि जाकर उसे बोले कि उसके घर से फोन आया है | उसने वैसा ही किया | बेचारा वो नींद में सोया हुआ था , दोपहर का समय था | नींद तोड़कर उठा और बूथ पर आ कर बैठ गया और फोन का इंतजार करने लगा | १०-१५ मिनट तक बैठने के पश्चात जब कोई फोन ( सो तो नहीं ही आना था ) नहीं आया तब हमलोग वहाँ पहुंचे ( मैं और मेरा एक अन्य मित्र ) | उसकी नजर हमपर पड़ी, फिर हमलोग थोडा मुस्कुराए और तब उसे समझते देर नहीं लगी कि वह १ अप्रैल का शिकार बना है | फिर १ अप्रैल को कोई Fool बने तो वो काफी खतरनाक हो जाता है | उसमें भी कहीं न कहीं बदले कि भावना तो जागृत हो ही जाती है | और यह तो सेकेण्ड टाईम था जब उसे हमलोगों ने उसे इस तरह से छकाया था | इस बार तो चैलेंज लगा था कि कोई Fool बनाकर देख ले | लास्ट टाईम तो इससे भी बुरा हुआ था | जनाब को अस्पताल के चक्कर कटवा दिए थे दिन भर ( ये भी एक बड़ा ही जबरदस्त वाकया है, १ अप्रैल का), सो इस बार तो वो सतर्क था | फिर भी बन ही गया | अब क्या करें, यही सोचते हुए थोडा मुस्कुराकर हमसब चले और जाकर उसके रूम पर बैठ गए | गप्पें मारने कि आदत थी , सो गप्पे चलने लगीं ... | इधर - उधर कि बातें होने लगी | लेकिन हम भी सतर्क थे कहीं हम भी मूर्ख न बन जाएँ | हमें तो पता था कि हम अलर्ट हैं इसलिए कोई कितना भी चाह ले , अब तो हम मूर्ख नहीं ही बन सकते | कुछ देर बातें करने के बाद मेरा मित्र नीचे दूकान से कुछ नाश्ता लाने को गया | दूकान बस ५ मिनट की दूरी पर था | वह १०-१५ मिनट में आया | साथ में कुछ बिस्किट्स और टोफियाँ थी और कुछ नमकीन | हमलोग खाए जा रहे थे और बातें किये जा रहे थे | एक टॉफी हमलोगों को काफी अच्छी लगती थी , वह सफ़ेद रंग का होता था | वह जब भी कुछ लाने जाता था तो वो टॉफी जरुर लाता था | इसबार भी वह टॉफी वह लाया था | सो हमें इसका एहसास भी नहीं था कि अब हमलोग बहुत अच्छी तरीके से मूर्ख बनने जा रहे थे | क्या हुआ होगा, जरा सोचिये ...... शायद आप वो नहीं सोच सकते जो उसने सोचा था | हमलोगों ने जब वो टॉफी मुँह में रखी कि बस हो गया..... उसके आगे हम बिलकुल शांत हो कर एक-दूसरे कि ओर देखने लगे | मेरे दूसरे मित्र ने वह टॉफी पहले ही खा ली थी और अगर वो चाहता तो मुझे बता सकता था कि मत खा पछतायेगा, पर नहीं उसने सोचा कि जब मै मूर्ख बन ही चुका हूँ तो फिर और कोई क्यों बचे | यह तो मानवीय सोच है | खैर रहने दीजिये, मुख्य बात पर आते हैं कि आखिर उस टॉफी में ऐसी ख़ास बात क्या थी कि हम मूर्ख बन गए | तो बात यह थी कि मेरे मित्र महोदय ने दूकान जाने के बहाने पहले तो सफ़ेद मोमबती खरीदी और एक दूसरी जगह जाकर उसे पीसकर उसको उस टॉफी के आकार में इस तरह से ढाला कि कोई भी नहीं पहचान सकता था कि यह सफ़ेद रंग वाली वही टॉफी नहीं है जो हम प्रायः खाया करते थे | और यह सब इतनी तेजी से किया कि हमें जरा सा भी शक नहीं हुआ कि उसने ऐसा कुछ किया है | तो फिर क्या था , मुँह में लेने के बाद , थोड़ी देर के लिए हमारा मुँह तो लटक गया लेकिन मेरे मित्र का चेहरा खिल गया | आखिर इतने जबरदस्त तरीके से बदला लिया था पूरे सूद सहित | बाद में हमने उसकी चतुराई और उसके प्रयास के लिए बुझे मन से बोला "मान गए भाई, हमने सोचा भी नहीं था इस बारे में, बाहर किसी को मत बताना, अपनी तो इज्जत ही चली जाएगी "। फिर थोड़ी देर बाद, हमसब रूम से निकल पड़े , अगले शिकार की तालाश में ....... ;)
इसी को कहते हैं शेर को सवा शेर :)
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका यह संस्मरण पढ़कर ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पल्लवी जी !!
हटाएंmera wala wakya to likha hi nahi Shivnath G, 2005 wala hi hai jis din karfue laga tha town mein.........
जवाब देंहटाएंहाँ, याद है .... कैसे भूल सकते हैं ;)
हटाएंअच्छा संस्मरण है ,कभी कभी शेर भी हरता है
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