गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

शीर्षक :  आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

लोकल ट्रेन अपनी धुन में चली जा रही थी |  अपनी सीट पर बैठे हिमेश कुछ सोच रहा था |  उसके हाथ में एक लेटर था जिसे वह कभी - कभी खोल कर पढ़ लेता था और फिर कुछ सोचने लगता था |  आज उसकी नजरें भी ट्रेन पे चिपके उस पोस्टर पर जा जा कर ठहर जाती थी जिसपे लिखा था  "घर बैठे कमाइए १२ से १५ हजार " (ऐसे पोस्टर आपको मुंबई जैसे मेट्रो सिटी में बहुत जगह मिल जाएँगे) |  रोज की तरह वह ट्रेन से उतरा और रूम के लिए चल पडा |
हिमेश रूम पे पहुँचा तब उसके हाथ में लेटर देखकर अमरीश पूछ बैठा  " ये तेरे हाथ में क्या है !" 
हिमेश ने बड़ी शांति से कहा  "वही लव लेटर है , ऑफिस की तरफ से  "  
"लव लेटर ! वो भी ऑफिस की तरफ से |  मजाक मत कर ला दिखा क्या है "
"हाँ, हाँ देख ले , तुझे भी ये मिल ही जाएगी १-२ दिन में " ऐसा कहते हुए हिमेश  ने लेटर उसके हाथ में थमा दिया |
(वस्तुतः हिमेश और अमरीश एक ही ऑफिस के दो अलग अलग ब्रांचों में काम करते हैं , और दोनों एक साथ ऑफिस के दिए बैचलर्स रूम में रहते हैं |)

लेटर पढ़कर अमरीश भी थोड़ी देर के लिए शांत हो गया | 
"ऐसा कैसे होगा , एक तो हमारी सैलरी कम है , ऊपर से ये इतना पैसा रूम के किराए के तौर पे काट लेंगे , तो फिर हमारे पास बचेगा क्या !"
(वस्तुतः उस लेटर में किराए बढ़ने की बात थी , पहले उन्हें काफी कम किराया देना पड़ता था , सो वो बड़े आराम से मस्ती में रह रहे थे, हालांकि उनकी सैलरी कम थी पर किराया कम कटने की वजह से उन्हें प्रॉब्लम नहीं होती थी  )
"यार , हम ये रूम छोड़ देते हैं और कहीं और देखते हैं "
"तेरे पास डिपोजिट के पैसे हैं , रूम छोड़ने में कोई दिक्कत नहीं है पर नए रूम के लिए डिपोजिट भी तो भरना पड़ेगा ! " (हिमेश ने कहा )
(मुंबई जैसे शहर में आपको किराए के रूम में रहने के लिए पहले अच्छी खासी रकम डिपोजिट के तौर पे जमा करनी होती  है )
दोनों इस मुद्दे पर सोच विचार कर रहे थे की आखिर वो क्या करें .....
हिमेश ने कहा " मैंने , कुछ नंबर (मोबाइल के ) नोट किये हैं , पार्ट टाइम जॉब के लिए |  मैं सोचता हूँ बात करनी चाहिए "
अमरीश ने उसकी तरफ देखा "ये सब भी सही नहीं होते हैं, ऐसे ही बोलते कुछ हैं , करवाते कुछ और हैं |  तुम जैसा सोच रहे हो उतना आसन नहीं है पार्ट टाइम जॉब करना "
हिमेश ने कहा "तो फिर क्या करें "
"कुछ नहीं चल बैठकर टीवी देखते हैं , टेंशन लेने से कुछ नहीं होने वाला |  वैसे भी कहते हैं न की 'चिंता चिता के सामान है ' "
दोनों टीवी देखने बैठ गए |  टीवी पर गाना आ रहा था....

"एक अकेला इस शहर में, रात में और दोपहर में
आबोदाना ढूँढता है , आशियाना ढूँढता है  ................"

दोनों बस शांत बैठे गाने का आनंद ले रहे थे, बिना किसी टेंशन के  ................... !!



11 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लिखा है !! अब हिमेश और अमरीश को अपना धेर्य बनाए रखना होगा और अपने प्रयास को नई दिशा और गति देनी होगी !!
    हिमेश और अमरीश को मेरी शुभकामनाएँ !! :)

    हाँ लोकल ट्रेन के पोस्टरों में दिखने वाले बाबा की जरुरत तो नहीं होगी ! ;) इतना मैं जनता हूँ !!

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  2. पढने वालों !!! यह घटना काल्पनिक नहीं है, इसका व्यक्ति विह्सेश से सम्बन्ध है !!!!"

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  3. ye to samay samay par jhatke lagte rahte hain. Aadmi ko sahi samay par sahi nirnay le hi lena chahiye. bhulane se behtar samasya ko shuljhala chahiye.

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  4. कमेंट्स के लिए आपसबों को धन्यवाद .....!!

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  5. अगर मैं इसे लघु-कथा कहूँ तो....
    मुझे अच्छी लगी...


    बधाई शिव ...

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  6. @ गीता पंडित : धन्यवाद गीता जी !!

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  7. ब्लॉग जगत में पहली बार एक ऐसा सामुदायिक ब्लॉग जो भारत के स्वाभिमान और हिन्दू स्वाभिमान को संकल्पित है, जो देशभक्त मुसलमानों का सम्मान करता है, पर बाबर और लादेन द्वारा रचित इस्लाम की हिंसा का खुलकर विरोध करता है. साथ ही धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले हिन्दुओ का भी विरोध करता है.

    समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
    .
    जानिए क्या है धर्मनिरपेक्षता
    हल्ला बोल के नियम व् शर्तें

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  8. चलो तनाव कुछ कम तो हुआ ..
    समस्‍याओं को भी फिल्‍मी गाने में मनोरंजक ढंग से प्रस्‍तुत कर दिया जाता है ..
    समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

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