सोमवार, 18 अप्रैल 2011

भीगे शब्द



शीर्षक : भीगे शब्द 

भीगे गीले शब्द
जिन्हें मैं छोड़ चुका था
हर रिश्ते नाते
जिनसे मैं तोड़ चुका था

सोचा था कि
अब नहीं आऊँगा उनके हाथ
पर आज महफ़िल जमाए बैठा हूँ
फिर से
भीगी रात में
उन्हीं भीगे शब्दों के साथ

9 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है, बधाई हो मित्र

    और लोगों की रचनाएँ भी पढ़ें

    जवाब देंहटाएं
  2. wahh wahhhh............

    शब्दों के गीलेपन से गिला हो गया मेरा मन

    जवाब देंहटाएं
  3. बहोत ही सुंदर रचना. वैसे शंब्दों से कवी कभी दूर नहीं हो सकता. वह कितना भागने की कोशिश करे उनसे, मात्र शब्द पीछा नहीं छोड़ते. अखीर वहीँ एक होते है जो आपका साथ जिंदगीभर निभाते है. जिंदगी की भाग दौड़ में आप भूल भी जाओ उन्हें तो फिर आ जाते है आपको अकेले देखकर. और तब तो आप भी मान लेतेहो की आपको उनकी बहोत जरुरत है. इसलिए उनसे दूर जाने कोशिश करो ही नहीं. सदैव ह्रदय और ओंठोंसे लगाये रखो, प्रियसी की तरह. क्यूँ की महफ़िल जमी रहनी चाहिए!

    जवाब देंहटाएं
  4. आपसबों का टिप्पणी हेतु धन्यवाद !!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही खूबसूरत पर भींगने की जगह भीगने कर लीजिएगा...
    वाकई भीगे से भाव, भीगे से शब्दों के साथ...

    जवाब देंहटाएं
  6. धन्यवाद वीना जी !!
    मैंने सुधार कर लिया है , शुक्रिया !

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी रचना को कविता मंच पर साँझा किया गया है

    http://kavita-manch.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद संजय जी मेरी रचना को कविता मंच पर स्थान देने के लिए !
      आभार ! :)

      हटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...