बुधवार, 25 मई 2011

आज फिर से ....



अरसों बाद आज
प्यारी सी डाँट किसी ने लगायी है
तवे पर सिंकी रोटी मीठी
कई दिनों बाद खायी है

फिर से मीठा दही गुड़ चखा
भगवत चरणों के फूल जेब में रखा
माथे पर आशीर्वाद का टीका
आज फिर किसी ने लगाया है
अपने कोमल हाथों से
मेरे माथे को सहलाया है


थके धूप से विरक्त हुआ
आज मिला फिर शीतल छाँव
कितने दिनों बाद दिख रहा सुन्दर
मेरा प्यारा अपना गाँव

आज उन्मुक्त स्वछंद
लिटा गोद में मन को , बस खोया हूँ
अरसों बाद
हाँ, अरसों बाद आज चैन से सोया हूँ

आज हवाओं में फिर
वही सौंधी खुशबू छायी है
कितनी अच्छी लग रही
मंद-मंद पुरवाई  है 
आज रात सपने में
मेरी माँ आई है
हाँ, आज रात सपने में
मेरी माँ आई है

9 टिप्‍पणियां:

  1. मजा आ गया सच में

    ऐसे ही लिखते रहो तुम इसी के लिए बने हो

    जवाब देंहटाएं
  2. आज फिर से,
    मन-वीणा पर किसी ने हाँथ फिराया है ,
    पुराने गीतों को नए आवाज़ में गुनगुनाया है |

    आज फिर से .... आज फिर से..

    जवाब देंहटाएं
  3. @ योगेन्द्र सर : धन्यवाद
    @ स्वदेसी : टिप्पणी भी कविता में करना, ये तो आप ही कर सकते हैं. अच्छा लगा, टिप्पणी देने के लिए धन्यवाद :)

    जवाब देंहटाएं
  4. माँ की उपस्थिति ही संबल देने को काफी है ..... सपना हो वास्तविक जीवन ....

    जवाब देंहटाएं
  5. माँ को याद करने के कारण बहुत अच्छे लगे ...

    जवाब देंहटाएं
  6. बड़े अरसे बाद सोने का आनद आया है
    आज माँ ने सपने में आ के सुलाया है |
    खुश रहो !
    शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  7. क्या बात है जानब पढ़ कर रूह फनाह हो गई | अदभुत लेखनी | आनंद से सराबोर हो गया | शुभकामनायें

    तमाशा-ए-ज़िन्दगी

    जवाब देंहटाएं
  8. मन-वीणा पर किसी ने हाँथ फिराया है ,
    पुराने गीतों को नए आवाज़ में गुनगुनाया है |

    आज फिर से ....

    जवाब देंहटाएं

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