(फोटो गूगल से साभार) |
पर कहते हैं न कि अनहोनी आपके आसपास हमेशा मंडराती रहती है । ऐसा ही कुछ हुआ उस गोरैया परिवार के साथ। बात यह थी कि जिस कमरे में उन्होंने अपना घोंसला बनाया था उसमें एक पंखा टंगा हुआ था । हालांकि हमलोग अक्सर इस बात का ध्यान रखा करते थे कि जब कभी वो कमरे में हों , पंखा बंद रहे । पर शायद होनी को कौन टाल सकता है । उस गोरैया माता-पिता में से एक उस पंखे कि चपेट में आ गया । और वहीं उसने अपने प्राण त्याग दिए, अपने पीछे एक छोटा सा संसार छोड़कर । हमने सुबह उसके निर्जीव शरीर को देखा और काफी दुखित हुए ।
कुछ दिन इसी तरह बीतता गया । पर एक दिन ना जाने क्या हुआ , गोरैया कमरे में नहीं आई । गोरैया के उस नवजात बच्चे की तरह , हमलोग भी उसके आने का इन्तजार कर रहे थे । रात बीत गया .... सुबह हो गई ... पर वो नहीं आई । बच्चा भूख से छटपटा रहा था जो कि उसके करुण आवाज़ में सहज ही प्रकट होता था । उसकी इस छटपटाहट के साथ हमारे मन में भी आशंकाओं की सुनामी उठने लगी थी । हमलोग इस सोच में पड़े थे कि आखिर क्या हुआ जो वह नहीं आई । हमसे उसकी भूख बर्दाश्त नहीं हो रही थी ।
हमलोगों ने शाम तक गोरैया का इन्तजार किया पर वह नहीं आई । अंततः हमदोनों ने गोरैया के बच्चे को खुद से ही दाना खिलाने की सोची । हमने घर में बने चावल के कुछ दाने लिए और उनके घोंसले में रख दिया , एक छोटी सी कटोरी में रखकर । कुछ देर बाद जब हमने मुआयना किया तो देखा कि सारे चावल के दाने ज्यों के त्यों पड़े थे। हम बहुत उदास हुए । हमें ऐसा लगा के शायद वो हमारे हाथ का दिया दाना नहीं खाना चाहते थे । फिर हमें ध्यान आया कि अभी तो वह नवजात है और खुद दाना नहीं चुग सकता है । तभी तो उसके माता-पिता अपनी चोंच से दाना उसके मुँह में डालते थे । तब हमने अपने हाथों से एक एक दाना लेकर उनके मुँह में डालना शुरू किया । और वह उसे सप्रेम स्वीकार करता गया । आखिर उसे भूख भी तो लगी थी .... । उसके कोमल चोंच जब हमारे हाथों कि उँगलियों को स्पर्श करते थे तो एक सुखद आनंद की अनुभूति होती थी । कुछ ही दिनों में हमारा उसका संबंध बहुत आत्मीय हो गया था । हमें ऐसा लगता था कि हमने भाषायी सीमाओं को तोड़ दिया है और मनुष्य एवं पक्षी के बीच की खाई को भी पाट दिया है । उसकी आँखें हमारे लिए भाषा और अभिव्यक्ति का माध्यम बन गई थीं । उसकी चहचहाहट काफी कुछ बयां कर देती थी | तब समझ में आया की संबंधों में भाषायी विविधता कोई बड़ी समस्या नहीं है , बस आत्मीयता होनी चाहिए , प्रेम होना चाहिए । पर आज मनुष्यों के बीच शायद इसका अभाव है ।
(फोटो गूगल से साभार) |
फिर एक दिन आया जब उसने लम्बी उड़ान भरी और उड़कर हमारे घर के बाहर एक आम की डाली पर जा बैठा । बहुत अच्छा लग रहा था .... । खुशी हुई पर एक दुःख भी था मन में कि आज वह हमें छोड़कर अपनी दुनिया में जा रहा था । तब उसकी आँखों में दूर से ही देखा था हमने , हमारे लिए आत्मीय प्रेम को .......... और एक वादा ........ फिर से मिलने का ....... ।
achchhi post...
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत के जिस शख्स ने हमारीवाणी.कॉम का नामकरण किया था उससे पहले उसने ही हमारीअंजुमन.कॉम का भी नामकरण किया था.
nice.....
जवाब देंहटाएंउसकी चहचहाहट काफी कुछ बयां कर देती थी | तब समझ में आया की संबंधों में भाषायी विविधता कोई बड़ी समस्या नहीं है , बस आत्मीयता होनी चाहिए....
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना
बहुत ही भावनात्मक वृतांत...
जवाब देंहटाएंइसे भी पढ़ें >>
http://corakagaz.blogspot.in/2012/01/parinda.html
संवेदनशील
जवाब देंहटाएं