शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार





पुलकित आनंदित अंतर्मन
देख रहा कोई दर्पण
विकार रहित हुआ जाता है 
खुल रहा मन का बंधन 
व्याकुल मन की व्यथाएँ चली व्योम के पार 
हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार  


अभिलाषाएँ कुछ दबी हुई 
जाग गयी, थीं सोयी हुई 
उल्लासित आँखें जागती हैं  
तरुण हृदय संग बंधी हुई 
खोल गया हो जैसे कोई बंद हृदय के द्वार 
हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार


विस्मृत यादें फिर झूमी 
नाच रही संग रंगभूमि
उन्मुक्त भाव संग झूम रहे  
ज्यों घुंघरू बाँध कोई बाला झूमी     
सूनी साजों पर कोई छेड़ गया फिर मन का तार 
हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार





@फोटो:  गूगल से साभार

20 टिप्‍पणियां:

  1. उल्लासित नयन (जगते हैं)
    तरुण हृदय संग (बंधे हुए)........ब्रेकेट में जो है क्‍या ये नहीं होना चाहिए।

    बाँध सखी घुंघरू, संग घूमी..........ये पंक्ति भी सही नहीं सज पाई। अच्‍छी शुरुआत थी कविता में, भाव-विहवलता भी थी, ऊपर के मेरे द्वारा चिन्हित दो स्‍थानों पर भाव गड़बड़ा गए हैं। देख लें।

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  2. बहुत सुन्दर....
    मन हर्षित हुआ.......

    अनु

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  3. हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार..मनाओ मनाओ हम भी आते हैं..

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  4. विस्मृत यादें फिर झूमी
    नाच रही अब रंगभूमि
    प्रेम प्रखर हुआ जाता है
    बाँध सखी घुंघरू, संग घूमी
    सूनी साजों पर कोई छेड़ गया फिर मन का तार
    हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार

    बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  5. बरसात तो सोये हुए भावों को जगाती है..सुन्दर भावाभिव्यक्ति.

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  6. बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......

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  7. अभिलाषाएँ कुछ दबी हुई
    जाग गयी, थीं सोयी हुई
    उल्लासित आँखें जागती हैं
    तरुण हृदय संग बंधी हुई ..
    मन के भाव को यथा बाँधा है ... बूंदों का ये त्यौहार बहुत कुछ जगा जाता है ...

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  8. बहुत ही सुंदर लिखा है आपने । आपकी एक अतिसुंदर रचना
    विस्मृत यादें फिर झूमी
    नाच रही संग रंगभूमि
    उन्मुक्त भाव संग झूम रहे
    ज्यों घुंघरू बाँध कोई बाला झूमी
    सूनी साजों पर कोई छेड़ गया फिर मन का तार
    हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार|
    जितनी तारीफ की जाये उतना कम

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  9. वाह ! बहुत अच्छी कविता ....
    अच्छा लिखते हैं आप ....!!

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  10. वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  11. ज्यों घुंघरू बाँध कोई बाला झूमी
    सूनी साजों पर कोई छेड़ गया फिर मन का तार
    हर्षित मन मना रहा बूँदों का त्योहार
    बहुत सुन्दर....
    मन हर्षित हुआ....वाह !

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  12. अच्छी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

    स्नील शेखर

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