सोमवार, 3 जून 2013

कि बचपन ही अच्छा था



कि बचपन ही अच्छा था 
हर चीज हर बात 
कितनी अच्छी थी 
वो वजनदार बस्ते 
उतने भी भारी नहीं थे 
वो स्कूल में मिले काम 
उतने भी मुश्किल नहीं थे

टिफिन में मम्मी के हाथों का बना खाना 
मिल बांटकर दोस्तों के संग खाना 
कितना अच्छा था 
खाने का वह मजा 
वह स्वाद सबसे अच्छा था

वह साईकिल का टायर 
और किसी लकड़ी से उसे घुमाते हुए दूर तक जाना 
कितना अच्छा था
दौड़ते पहियों के संग थके पैर का कभी ना थकना 
और एक पूरी दुनिया घूम कर आ जाना 
सब कितना अच्छा था

हर त्योहार का इन्तजार करना
उसके आने की उलटी गिनतियाँ गिनना
नए कपडे, स्वादिष्ट पकवान
मम्मी के कामों में थोडा बहुत हाथ बंटाना
और उससे ज्यादा काम बढ़ाना
और बने पकवानों को 
थोड़ी थोड़ी देर पर 
हाथों में ले
घूम घूम कर खाते रहना
त्योहारों वाला वह मौसम कितना अच्छा था

छुप्पन छुपाई 
गिल्ली डंडा 
विष-अमृत 
ऐसे कितने ही मजेदार खेल खेलना 
उन खेलों में जीतना 
या फिर हारना भी 
कितना अच्छा था

लड़ना, झगड़ना
डांट सुनना
रूठना मनाना
शरारते करना
अपनी बातें मनवाना
गुल्लक में एक एक पैसे जमा करना
उसे फोड़ना फिर गिनना
उन पैसों का कुछ खरीदना 
भैया के गुल्लक से चुपचाप पैसे निकालना
फिर आइसक्रीम खाना
पतंगे उड़ाना
कटी पतंगों के पीछे भागना
और भी कितनी बातें
सब कितना अच्छा था

रात में दिया तले 
सब भाई-बहनों का  
पापा के कहने पर जबरदस्ती बैठना 
बहते पसीने में 
मद्धिम रौशनी में 
कॉपी किताब खोलकर पढ़ना  
होम वर्क पूरा करना 
कितना अच्छा था

और सबसे अच्छी बात
मम्मी के हाथों की बनी
गरम गरम रोटी खाना
साथ बैठकर
कभी गोद में सर रखकर
कुछ कहानियां सुनना
बातों बातों में
बहुत कुछ सीखना
कभी खुद तो कभी मम्मी का
अपने हाथों से पंखा झलना
वो सब कितना अच्छा था

कई चीजे छूट गईं 
कितनी बातें बदल गईं  
नहीं बदला तो मम्मी पापा का 
हमारे लिए वही स्नेह, वही प्यार 
मेरा बचपन आज भी 
खेल रहा है उनकी आँखों में 
आज बस वही एक चीज तो अच्छी है 
पर शायद ..... 
अब मैं उतना अच्छा नहीं ....
जितना मेरा बचपन !





@फोटो: गूगल से साभार 



25 टिप्‍पणियां:

  1. पर शायद .....
    अब मैं उतना अच्छा नहीं ....
    जितना मेरा बचपन,,,

    बहुत सुंदर रचना ,,,

    recent post : ऐसी गजल गाता नही,

    जवाब देंहटाएं
  2. सच्ची......
    कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन......वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी......

    सुन्दर अभिव्यक्ति..
    अनु

    जवाब देंहटाएं

  3. टिफिन में मम्मी के हाथों का बना खाना
    मिल बांटकर दोस्तों के संग खाना
    कितना अच्छा था
    खाने का वह मजा
    वह स्वाद सबसे अच्छा था
    SABSE SUNDAR

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी यह रचना कल मंगलवार (04 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

    जवाब देंहटाएं
  5. बचपन के वे लुभावने दिन......कौन भुला पाता है? भावप्रवण अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  6. मम्मी के कामों में थोडा बहुत हाथ बंटाना
    और उससे ज्यादा काम बढ़ाना........
    सबसे प्यारा लम्हा...........
    ऐसे ही पल बचपन को जिन्दा रखते हैं यादों में ....और फिर बच्चा होने का मन करता है ...

    जवाब देंहटाएं
  7. बचपन के लुभावने दिन......दिल से लिखी ..सुन्दर रचना .....मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  8. बचपन के सुनहरे पल ....... बहुत सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत खूब कविता .... मज़ा आ गया पढ़कर |

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी सर्वोत्तम रचना को हमने गुरुवार, ६ जून, २०१३ की हलचल - अनमोल वचन पर लिंक कर स्थान दिया है | आप भी आमंत्रित हैं | पधारें और वीरवार की हलचल का आनंद उठायें | हमारी हलचल की गरिमा बढ़ाएं | आभार

    जवाब देंहटाएं
  11. बचपन की प्यारी यादें कौन भूला पाता है.....बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही भावपूर्ण रचना । बधाई हो ।

    जवाब देंहटाएं
  13. मेरा बचपन आज भी
    खेल रहा है उनकी आँखों में...
    ------------
    प्यारी यादें.....

    जवाब देंहटाएं
  14. मेरा बचपन आज भी
    खेल रहा है उनकी आँखों में
    आज बस वही एक चीज तो अच्छी है
    पर शायद .....
    अब मैं उतना अच्छा नहीं ....
    जितना मेरा बचपन !

    बहुत अच्छी कविता है ......

    जवाब देंहटाएं
  15. जनम-जनम की कसमें ले लो ,
    दो दिन फिर बचपन लौटा दो !

    जवाब देंहटाएं
  16. बचपन के दिन भी क्‍या दिन थे। बहुत अच्‍छी कविता बालपन को याद करते हुए।

    जवाब देंहटाएं
  17. बचपन के कितने ही खेल .. कितनी ही यादों के पंख लगा दिए आपकी इस रचना ने ...
    बहुत ही लाजवाब रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  18. प्रिय शिवनाथ जी ..प्यारी रचना बचपन के बिभिन्न क्रियाकलाप यादें चुटीली शरारतें झलक पडीं ..अच्छी रचना काश वो बचपन फिर लौट आता ...
    भ्रमर ५

    जवाब देंहटाएं

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