रविवार, 13 मई 2012

यहीं कहीं पर है मेरा गाँव

(फोटो गूगल से साभार)
हाँ, जरा रुकना यहाँ
यहीं कहीं पर है मेरा गाँव
एक पीपल का पेड़ होगा बड़ा
बड़े घने हैं जिसके छाँव

एक तालाब है
जहाँ मजे में होंगे कुछ बच्चे
ढूँढना शायद
मिल जाऊँ 'मैं' उनमें कहीं

वो 'हरिया' होगा
गायों को चराता हुआ
और कुछ बछड़ों
को हाँककर भगाता हुआ
जरा देखना उसे

रुकना देखना
एक 'आलीशान बँगला' होगा
गाँव में अकेला खड़ा
सन्नाटों से घिरा
ऊँचाइयों से देखता हुआ
गाँव के छोटे छोटे घरों को

'सुखिया' ताई होगी
अपने घर के बाहर
बैठी हुई, भुट्टे जलाती हुई
खेलता हुआ  'बचपन'
चेहरे पर हर वक्त
'झुर्रियों' को छुपाई हुई

'चौपाल' लगता है जहाँ
शाम के बाद
जहाँ 'अब्दुल' काका
'हरविंदर' ताऊ
और कई मिलकर
कुछ तो बजाते मिल जाएँगे
गम की पीठ पर थपथपाते
                                                  कुछ गीत गाते मिल जाएँगे

                                                        एक झोपड़ा होगा
मिट्टी से लिपी हुई दीवारें होंगी जिसकी
कुछ अजीब सी तस्वीरें बनी हुई
और बाहर दरवाजे पर
एक गाय और उसका बछड़ा होगा
शाम को दीप जलाती
तुलसी चौरा के पास
जहाँ कोई 'माँ' होगी
और पास ही खड़ा
एक बच्चा होगा 'मासूम' सा
'आवाज' लगाना उसे
शायद 'मैं' मिल जाऊँ

4 टिप्‍पणियां:

  1. रुकना देखना
    एक 'आलीशान बँगला' होगा
    गाँव में अकेला खड़ा
    सन्नाटों से घिरा
    ऊँचाइयों से देखता हुआ
    गाँव के छोटे छोटे घरों को

    बढ़िया अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को |
    फुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये

    संजय भास्कर

    जवाब देंहटाएं

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