(फोटो गूगल से साभार)
हाथ में एक तस्वीर है
चेहरे पर जिसके
आरी तिरछी लकीर है
गड्ढे हैं आँखों के नीचे
उन गड्ढों में तैरता
कोई छंद है
आँखों से निकल कर
एक कविता बह रही है
फटे चीटे कपड़े बदन पर
दिल में कोई जख्म है, पीर है
शाम की विश्राम करती राहों पर
चल रहा कोई फ़कीर है
अँधेरा होने को है
चाँद निकाला है उसने
अपने बाईं तरफ वाली
ऊपरी जेब से
रख लिया है हाथों में
दर्द की तनहा रातों में
गीत गाता हुआ
तोड़ रहा
ख़ामोशी की जंजीर है
पर ना जाने क्यूँ
जमाना जिसके लिए
आज मूक बधिर है
हाथ में एक तस्वीर है
चेहरे पर जिसके
आरी तिरछी लकीर है !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-08-2017) को कई सरकार खूंटी पर, रखी थी टांग डेरे में-: चर्चामंच 2711 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर
हटाएंसादर आभार !!
Samvedansheel
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... शब्दों की जादूगरी से निकली लाजवाब संवेदनशील रचना ...
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर आभार ''एकलव्य"
जवाब देंहटाएंकभी कभी किसी ख़ास भाव या दशा का वर्णन करने के लिये शब्द नहीं मिलते
जवाब देंहटाएंआज मैं भी नि:शब्द हूं