(फोटो गूगल से साभार) |
कि आजकल सपने
कितने डरावने हो गए हैं
अजीब अजीब आकृतियाँ
अजीब अजीब परछाईयाँ
पीछा करती हुई अक्सर
और 'मैं' भागता हुआ
पीछा छुड़ाता हुआ
कादो कीचड़ में पैर सनते हुए
और फिर भी
निकलने की जद्दोजहद
अजीब सा खौफ
चेहरे पर
पसीनापस माथा
साँप बिच्छू
और कई तरह तरह की चीजें
सामने दिख जाते हैं
कभी डर से मूक खड़ा
तो कभी लड़ने की कोशिश
सांप की बजाय मैं रेंगता हुआ
और कभी कभी प्राणहीन सा शरीर
बिलकुल शिथिल
बस जैसे सौंप दिया हो
खुद को
परिस्थिति के हाथों में
पर ना जाने
फिर क्या होता है
पता नहीं
थोड़ी सी आशा
जाग उठती है मन में
कहीं से तो प्राण आते हैं
शिथिल हुए पैरों में
और मैं फिर भागने लगता हूँ
और भागता चला जाता हूँ !