(फोटो गूगल से साभार) |
तमस में घिरते
व्याकुल मन को
देख रहीं
अदृश्य निगाहें (मन की)
दीपक लेकर चलता कोई
पर नहीं खुलती हैं
बंद निगाहें
सृजन और विध्वंस
के मध्य
दो पाटी में पीसता मन
मन की व्याकुलता
बाँध ना पाया
धरा की अपनी सीमाएँ
निज मन में ही
शक्ति अकूत
बाँध सके जो खुद को
घोर तमस में दीप जलाए
राह दिखाएँ खुद को