मन का पंछी
मंगलवार, 18 नवंबर 2014
बोलता पत्थर !
(फोटो गूगल से साभार)
कितनी ठोकरें खाई थीं
राह में पड़े थे जब
किसी ने उठा
रख दिया मंदिर में
और समय बदल गया है अब
जो मारते थे ठोकरें
खुद पूजने आ गए
खाया था जिनसे चोट
पैरों पर मेरे 'वो'
कितने फूल चढ़ा गए !
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