(फोटो गूगल से साभार) |
तुम्हारी आँखों में
सवाल हजार हैं
तुम्हारे माथे की बिंदिया
उनके जवाब हैं
तुम बोलो ना बोलो
ये बिंदिया बोल देती है
तुम्हारे सारे जज्बात
यूँ ही खोल देती है
तुम्हारे रंज
गिले शिकवे
सब चुपचाप सुनती है
तुम्हारी बिंदिया ही तो है
जो माथे की गहन
रेखाओं के बीच
खुशियाँ ढूँढ लेती है
यही बिंदिया है
जो कर जाती है
हर शाम पूनम
भर रही होती जो उजाला
मन में, जिंदगी में
धीरे धीरे
मद्धम मद्धम