(फोटो गूगल से साभार) |
एक 'शाम'
जो छोड़ आया था कोई
समंदर की लहरों पर
सुना है
आज तक वो 'शाम'
ढली नहीं
बाट जोहती किसी की
उच्छश्रृंखल सी
बार बार
डूबते किनारे पर
ढूँढती है निशां
किसी के क़दमों की
जो छोड़ आया था कोई
समंदर की लहरों पर
सुना है
आज तक वो 'शाम'
ढली नहीं
बाट जोहती किसी की
उच्छश्रृंखल सी
बार बार
डूबते किनारे पर
ढूँढती है निशां
किसी के क़दमों की
सुना है
ज्वार उठता है कभी कभी
खामोश गहराई से
और लहरें बात करती मिलती हैं
खामोश शाम की तन्हाई से
सवाल एक ही है
आखिर कब
वो 'शाम' ढलेगी
और कब उसे 'मुक्ति' मिलेगी
आखिर कब ?
आखिर कब
वो 'शाम' ढलेगी
और कब उसे 'मुक्ति' मिलेगी
आखिर कब ?