(फोटो गूगल से साभार) |
छोड़ आया हूँ कुछ नगमे
साहिलों पर तेरे नाम से
शाम छुपा कर रख दिया है
वही रेत की ढेर में
कुछ पत्थर उगा आया हूँ
वहाँ आस पास
बस जो सावन आ जाए
झूम लेंगे तब सभी
अभी तो शांत सोए हैं
सब अलसाई नींद में
कश्ती पड़ी वही
थकी सी हार कर
सूरज से मिल लौटा था
दरिया को पार कर
उम्मीद डूबी नहीं
इक सूरज के डूबने से
लो कारवां चल पड़ा फिर
इक चाँद के उगने से