आईना तो हर किसी को
उतार लेता है अपने अन्दर
मगर उतरा हर कोई आईने में
कहाँ निकाल पाता है खुद को
उस आईने के अन्दर से
बस कैद हुआ रह जाता है मानो
आईने के मोहपाश में
यह आईने की खूबसूरती है
जो बना देता है
किसी को भी खुबसूरत
किसी को भी !
आईने के सामने
चाहे जो हो
जैसा भी हो
प्यारी ही लगती है
उसे अपनी मूरत
पर आईना कभी
झूठ नहीं बोलता
आईने की सच्चाई
है कौन देखना चाहता?
है कौन स्वीकारना चाहता
उसके नजरिये को
जिससे है वो औरों को देखता
हम तो खुद की नजरों से
देख रहे होते हैं
खुद को
आईने की नजरों से नहीं
और जो देखना शुरू कर दिया
आईने की नजरों से
तो सच में
सच से साक्षात्कार
सच से साक्षात्कार
होता दिख जाएगा
सच कड़वा हो सकता है
मगर सच को स्वीकारना
सत्य को पाने जैसा है
और सत्य तो एक ही है ....
@फोटो: गूगल से साभार