गत वर्ष होली के अवसर पर मैंने यह कविता लिखी थी। यह कविता दैनिक
जागरण समाचार पत्र में प्रकाशित भी हुई थी। आज छुट्टियों में घर निकल रहा
हूँ सो बहुत खुश हूँ। होली मन मस्तिष्क पर दस्तक दे रहा हैं और एक आनंद का
संचार हुए जा रहा है। आपसबों को होली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ :-)
चलो चाँद के सुनहले चेहरे पर
थोड़ा सा हरा रंग लगाएँ
रात का रंग श्यामल
लेप आएँ उसपर थोड़ा रंग धवल
हरी पत्तियों से छनकर जो आ रही
सुबह की सुनहरी धूप
भरकर मुठ्ठी में आज उसे
मुन्नी बिटिया के गालों पर लगा आएँ
तोड़ बादल का ईक टुकडा गुलाबी
माँ की चरणों को छू आएँ
बड़े बुजुर्गों के हाथों से
आशीर्वाद का टीका लगवा आएँ
गैया , बछड़े और पंछी
सबको अपने पास बुलाएँ
गाँव किनारे नदी गा रही
चलो थोड़ा वो गीत सुन आएँ
हम वादियों में वहाँ फिर
फगुआ गीत गाएँ
फागुन के रंग में आज हम
सारी नदी रंग आएँ
मिट्टी का रंग गाढ़ा
दिन के माथे पर लगा आएँ
सुंदर वसुंधरा हरी भरी
विकारमुक्त हम हो जाएँ
मिलकर संग आज उसके
आओ पावन होली मनाएँ
मिलकर संग आज उसके
आओ पावन होली मनाएँ
@फोटो: गूगल से साभार