क्या मैं 'जिंदा' हूँ
'नहीं' तो थोड़ा एहसास
थोड़ी राख 'अतीत' की
भर दे कोई
मेरी मुठ्ठी में
गीत कोई गा दे 'वही'
'नहीं' तो थोड़ा एहसास
थोड़ी राख 'अतीत' की
भर दे कोई
मेरी मुठ्ठी में
गीत कोई गा दे 'वही'
फिर से मेरे कानों में
और हो सके तो
पिला दे कोई मुझे
अमर संस्कारों की अमृत
करा दे स्पर्श
माँ की चरणों का
और लगा दे कोई
मिटटी मेरे बचपन की
कि मैं जिंदा हो जाऊँ फिर से
और चाँद उगने लगे
मेरे घर की देहरी पर
एक बार फिर से
हाँ, वैसे ही फिर से
और हो सके तो
पिला दे कोई मुझे
अमर संस्कारों की अमृत
करा दे स्पर्श
माँ की चरणों का
और लगा दे कोई
मिटटी मेरे बचपन की
कि मैं जिंदा हो जाऊँ फिर से
और चाँद उगने लगे
मेरे घर की देहरी पर
एक बार फिर से
हाँ, वैसे ही फिर से