(फोटो गूगल से साभार)
हाथ में एक तस्वीर है
चेहरे पर जिसके
आरी तिरछी लकीर है
गड्ढे हैं आँखों के नीचे
उन गड्ढों में तैरता
कोई छंद है
आँखों से निकल कर
एक कविता बह रही है
फटे चीटे कपड़े बदन पर
दिल में कोई जख्म है, पीर है
शाम की विश्राम करती राहों पर
चल रहा कोई फ़कीर है
अँधेरा होने को है
चाँद निकाला है उसने
अपने बाईं तरफ वाली
ऊपरी जेब से
रख लिया है हाथों में
दर्द की तनहा रातों में
गीत गाता हुआ
तोड़ रहा
ख़ामोशी की जंजीर है
पर ना जाने क्यूँ
जमाना जिसके लिए
आज मूक बधिर है
हाथ में एक तस्वीर है
चेहरे पर जिसके
आरी तिरछी लकीर है !