मन का पंछी
शुक्रवार, 9 जनवरी 2015
भीगी पलकें
भीगी पलकों से
उनकी मुस्कुराहटें
गीली हो चली
खामोशी और मौन में
भीगता रहा दो मन
बड़ी देर तलक
दिल की सारी शिकायतें
सारे गिले शिकवे
बह गए कहीं
रात के
आसमां पर
काले बादल थे
बस थोड़ी देर पहले
अभी चाँद
उफ़क़ कर
आ गया है वहाँ
मुस्कुराते हुए
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