नमस्कार ! बहुत दिनों तक ब्लॉग जगत से न चाहकर भी अलग रहा । अपनी एक रचना के साथ फिर से आपके आशीर्वाद और स्नेह की अभिलाषा लिए हाजिर हूँ ।
(फोटो गूगल से साभार ) |
द्रवित दुखित
छोड़ चली मुझे
कहीं दूर
मेरी परछाई
कई बार अगाह
किया था उसने
पर नहीं सुनी मैंने
अनदेखा,
अनसुना करता रहा
और उसके दिल में
दर्द भरता रहा
दर्द उसका
आह उसकी
नहीं पड़ी सुनाई
कई दफे उसने
आवाज लगाई
ओ मेरी परछाई !
मैं मूरख
तेरा दर्द जान ना सका
तेरी महत्ता
छोड़ चली मुझे
कहीं दूर
मेरी परछाई
कई बार अगाह
किया था उसने
पर नहीं सुनी मैंने
अनदेखा,
अनसुना करता रहा
और उसके दिल में
दर्द भरता रहा
दर्द उसका
आह उसकी
नहीं पड़ी सुनाई
कई दफे उसने
आवाज लगाई
ओ मेरी परछाई !
मैं मूरख
तेरा दर्द जान ना सका
तेरी महत्ता
पहचान ना सका
अब यह विरह
नहीं स्वीकार
मन प्रायश्चित
करने को
अंतसः तैयार
तेरे जाने का
सबब हूँ मैं
आने का सबब भी
मैं ही बनूँगा
वादा है
तुझे वापस लाऊँगा
बिन तेरे
कहाँ मैं जिंदा रह पाऊँगा !!
अब यह विरह
नहीं स्वीकार
मन प्रायश्चित
करने को
अंतसः तैयार
तेरे जाने का
सबब हूँ मैं
आने का सबब भी
मैं ही बनूँगा
वादा है
तुझे वापस लाऊँगा
बिन तेरे
कहाँ मैं जिंदा रह पाऊँगा !!