(फोटो गूगल से साभार) |
चलो दो चार किस्से बतियाता चलूँ
जिंदगी को गुनगुनाता चलूँ
तबियत में उतार चढ़ाव लाजिमी है
जरा तबियत से उसे गले लगाता चलूँ
हसरतें कई बह जाती हैं
रेतीली लहरों के साथ साथ
उम्मीदें कई उड़ जाती हैं
बहती हवाओं के साथ
पर मजबूर हूँ दिल से ए जिंदगी
मुस्कुराने की आदत है, मुस्कुराता चलूँ
हसरतों का कारवां फिर बनाता चलूँ
कोरे कागज़ पर लिख कर
क्यूँ फेंक दे फिर उसे मोड़ माड़ कर
तल्खियां रिश्तों में आम है
क्या मिला है बगिया उजाड़ कर
उड़ाने और लपेटने का पतंग
सिलसिला ये लाजवाब है
रिश्तों को संभालना जो सीख ले
वो दुनिया में बेमिसाल है
अपनापन सा कुछ मिठास मिलाता चलूँ
रिश्ता इंसानियत का और बनाता चलूँ
बिखरना और टूटना मानता हूँ
पर टूट कर जुड़ना भी जानता हूँ
अमावस का आना तय है हर महीने
ख्याल में पूणर्मासी के रातें गुजारता हूँ
सीखने को बहुत कुछ है जिंदगी में
पर ढाई आखर की महता पहचानता हूँ
हैं अंधेरों से बातें करती कई राहें
उन राहों पर दीप जलाता चलूँ
जिंदगी तुम बहुत खूबसूरत हो
चलो तुम्हें तुम्हारा दीदार कराता चलूँ